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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् इसी प्रकार देश और काल अर्थ में 'पश्चात्' शब्द के सहाय से शेष उदाहरणों की ऊहा कर लेवें।
सिद्धि-(१) अवस्तात् । यहां पूर्वोक्त अवर' शब्द से 'अस्तात्' प्रत्यय करने पर 'अवर' के स्थान में 'अव' आदेश है।
(२) अवरस्तात् । यहां पूर्वोक्त 'अवर' शब्द से 'अस्तात्' प्रत्यय करने पर विकल्प पक्ष में 'अवर' शब्द के स्थान में 'अव्' नहीं होता है।
इति स्वार्थिकप्रत्ययप्रकरणम् ।
विधार्थ-अधिकरणविचालविशिष्टार्थप्रत्ययप्रकरणम् धा:
(१) संख्याया विधार्थे धा।४२। प०वि०-संख्याया: ५।१ विधा-अर्थे ७१ धा १।१ (सु-लुक्) ।
स०-विधाशब्दस्यार्थ:-विधार्थः, तस्मिन्-विधार्थे (षष्ठीतत्पुरुषः)। विधा-प्रकारः।
अन्वय:-विधार्थे संख्याया धाः।
अर्थ:-विधार्थे क्रियाप्रकारेऽर्थे वर्तमानेभ्य: संख्यावाचिभ्य: प्रातिपदिकेभ्यो धा: प्रत्ययो भवति।
उदा०-एकया विधया भुङ्क्ते-एकधा भुङ्क्ते। द्वाभ्यां विधाभ्यां गच्छति-द्विधा गच्छति। त्रिधा गच्छति। चतुर्धा गच्छति। पञ्चधा गच्छति।
आर्यभाषा: अर्थ-(विधार्थे) क्रिया-प्रकार अर्थ में विद्यमान (संख्यायाः) संख्यावाची प्रातिपदिकों से (धा:) प्रत्यय होता है।
उदा०-एक प्रकार से खाता-पीता है-एकधा खाता-पीता है। दो प्रकार से जाता है-द्विधा जाता है। तीन प्रकार से जाता है-त्रिधा जाता है। चार प्रकार से जाता है-चतुर्धा जाता है। पांच प्रकार से जाता है-पंचधा जाता है।
सिद्धि-एकधा। एक+टा+धा। एकधा+सु। एकधा+० । एकधा।
यहां विधा' अर्थ में विद्यमान, संख्यावाची 'एक' शब्द से 'धा' प्रत्यय है। ऐसे ही-द्विधा, त्रिधा, चतुर्धा, पञ्चधा।
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