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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अर्थ:-सप्तम्यन्तेभ्य: सर्वेकान्यकियत्तद्भ्य: प्रातिपदिकेभ्यो दा प्रत्ययो भवति, कालेऽभिधेये।
उदा०-(सर्व:) सर्वस्मिन् काले-सर्वदा, सदा। (एक:) एकस्मिन् काले-एकदा। (अन्य:) अन्यस्मिन् काले-अन्यदा। (किम्) कस्मिन् काले-कदा। (यत्) यस्मिन् काले-यदा। (तत्) तस्मिन् काले-तदा।
__आर्यभाषा: अर्थ-(सप्तम्या:) सप्तम्यन्त (सर्वैकान्ययत्तदः) सर्व, एक, अन्य, यत्, तत् प्रातिपदिकों से (दा) दा प्रत्यय होता है (काले) यदि वहां काल-समय अर्थ अभिधेय हो।
उदा०-(सर्व) सर्व-सब काल में-सर्वदा, सदा। (एक) एक काल में-एकदा। (अन्य) अन्य काल में-अन्यदा। (किम्) किस काल में-कदा (कब)। (यत्) जिस काल में-यदा (जब)। (तत्) उस काल में-तदा (तब)।
सिद्धि-(१) सर्वदा । सर्व+ङि+दा। सर्वदा। सर्वदा+सु । सर्वदा।
यहां सप्तम्यन्त सर्व' शब्द से काल अर्थ अभिधेय में इस सूत्र से 'दा' प्रत्यय है। ऐसे ही-एकदा, अन्यदा।
(२) सदा। यहां सर्व' शब्द से पूर्ववत् 'दा' प्रत्यय है और सर्वस्य सोऽन्यतरस्यां दि (५।३।६) से 'सर्व' के स्थान में 'स' आदेश होता है।
(३) कदा। यहां 'किम्' शब्द से पूर्ववत् 'दा' प्रत्यय है और 'किम: क:' (७।२।१०३) से किम्' के स्थान में क' आदेश होता है।
(४) यदा । यत्+डि+दा। यत्+दा। यअ+दा। यदा+सु । यदा।
यहां सप्तम्यन्त यत्' शब्द से पूर्ववत् 'दा' प्रत्यय है। 'दा' प्रत्यय की विभक्ति संज्ञा होकर 'त्यदादीनाम:' (७।२।१०२) से 'यत्' के अन्त्य तकार को अकार आदेश होता है और अतो गुणे (६।१।९६) से उसे पररूप एकादेश होता है। ऐसे ही तत' शब्द से-तदा। हिल्
(१६) इदमो रहिल्।१६। प०वि०-इदम: ५।१ हिल् १।१। अनु०-सप्तम्या:, काले, इति चानुवर्तते। अन्वय:-सप्तम्या इदमो हिल् काले।
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