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________________ २३० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(ऊष) ऊष धूल इसकी है वा इसमें है यह-ऊषर क्षेत्र, बंजर भूमि। (सुषि) सुषि छिद्र इसका है वा इसमें है यह-सुषिर काष्ठ (लकड़ी)। (मुष्क) मुष्क बड़े अण्डकोष इसके हैं वा इसमें हैं यह-मुष्कर पशु। (मधु) मधु-मीठा रस इसका है वा इसमें है यह-मधुर गुड। सिद्धि-ऊषरः । ऊष+जस्+र। ऊष+र। ऊपर+सु। ऊषरम्। यहां प्रथमा-समर्थ ऊष' शब्द से अस्य (षष्ठी) और अस्मिन् (सप्तमी) अर्थ में इस सूत्र से 'र' प्रत्यय है। ऐसे ही-सुषिरम्, मुष्करः, मधुरः । (१५) धुद्रुभ्यां मः।१०८| प०वि०-धु-द्रुभ्याम् ५।२ म: १।१ । स०-द्योश्च द्रुश्च तौ धुव्र , ताभ्याम्-युद्रुभ्याम् (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-तत्, अस्य, अस्ति, अस्मिन्, इति, इति चानुवर्तते। अन्वय:-तद् बुद्रुभ्यामस्य, अस्मिन्निति च म:, अस्ति। अर्थ:-तद् इति प्रथमासमर्थाभ्याम् धुद्रुभ्यां प्रातिपदिकाभ्याम् अस्येति षष्ठ्यर्थे, अस्मिन्निति च सप्तम्यर्थे म: प्रत्ययो भवति, यत् प्रथमासमर्थमस्ति चेत् तद् भवति। उदा०-द्यौरस्य, अस्मिन् वाऽस्ति-द्युमः । दूरस्य, अस्मिन् वाऽस्तिद्रुमः। आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) प्रथमा-समर्थ (शुद्रुभ्याम्) द्यौ, द्रु प्रातिपदिकों से (अस्य) षष्ठी-विभक्ति और (अस्मिन्निति) सप्तमी-विभक्ति के अर्थ में (म:) म प्रत्यय होता है (अस्ति) जो प्रथमा-समर्थ है यदि वह 'अस्ति' हो। उदा०- (द्यौः) द्यौः-द्युति इसकी है वा इसमें है यह-द्युम (धुलोक)। (ङ) दु-शाखा इसकी है वा इसमें है यह-द्रुम (वृक्ष)। सिद्धि-घुम: । दिव्+सु+म। दिउ+म। द्यु+म। धुम+सु। धुमः। यहां प्रथमा-समर्थ 'दिव्' शब्द से अस्य (षष्ठी) और अस्मिन् (सप्तमी) अर्थ में इस सूत्र से 'म' प्रत्यय है। दिव उत्' (६।१।१३१) से दिव्' के वकार को उकार आदेश होता है। ऐसे ही-द्रुमः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003299
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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