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________________ पञ्चमाध्यायस्य द्वितीय पादः २२५ अर्थ:-तद् इति प्रथमासमर्थाभ्यां तप:सहस्राभ्यां प्रातिपदिकाभ्याम् अस्येति षष्ठ्यर्थे, अस्मिन्निति च सप्तम्यर्थे यथासंख्यं विनीनी प्रत्ययौ भवतः, यत् प्रथमासमर्थमस्ति चेत् तद् भवति । उदा०-(तपः) तपोऽस्य, अस्मिन् वाऽस्ति-तपस्वी। (सहस्रम्) सहस्रमस्य, अस्मिन् वाऽस्ति-सहस्री। आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) प्रथमा-समर्थ (तप:सहस्राभ्याम्) तपस्, सहस्र प्रातिपदिकों से (अस्य) षष्ठी-विभक्ति और (अस्मिन्) सप्तमी-विभक्ति के अर्थ में (विनीनी) यथासंख्य विनि और इनि प्रत्यय होते हैं (अस्ति) जो प्रथमा-समर्थ है यदि वह 'अस्ति' हो। उदा०-(तपः) तप इसका है वा इसमें है यह-तपस्वी। द्वन्द्वसहनं तपः' भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी, हानि-लाभ, मान-अपमान रूप द्वन्द्वों को सहन करना तप' कहाता है। (सहस्र) सहस्र हजार कार्षापण (रुपया) इसका है वा इसमें है यह-सहस्री (हजारी)। सिद्धि-(१) तपस्वी । तपस्+सु+विनि। तपस्+विन् । तपस्विन्+सु। तपस्वीन्+० । तपस्वी। यहां प्रथमा-समर्थ 'तपस्' शब्द से अस्य (षष्ठी) और अस्मिन् (सप्तमी) अर्थ में इस सूत्र से विनि' प्रत्यय है। सौ च' (६।४।११३) से नकारान्त अंग की उपधा को दीर्घ, हल्डन्यान्भ्यो दीर्घात०' (६।१।६७) से सु' का लोप और नलोप: प्रातिपदिकान्तस्य (८।२७) से नकार का लोप होता है। यहां तसौ मत्वर्थे' (१।४।१९) से तपस्' शब्द की भ-संज्ञा होने से ससजुषो रुः' (८।२।६६) से तपस्' शब्द को 'रुत्व' नहीं होता है। (२) सहस्री। यहां सहस्र' शब्द से पूर्ववत् इनि' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। विशेष: तपस्' शब्द से 'अस्मायामेधास्त्रजो विनिः' (५।२।१२१) से विनि' प्रत्यय सिद्ध था और 'सहस्र' शब्द से 'अत इनिठनौ' (५।२।११५) से 'इनि' प्रत्यय सिद्ध था फिर यहां विनि' और 'इनि' प्रत्यय का विधान इसलिये किया गया है कि 'अण् च' (५।२।१०३) से विधीयमान अण् प्रत्यय विनि' और 'इनि' प्रत्यय का बाधक न हो। अण् (१०) अण् च।१०३। प०वि०-अण् १।१ च अव्ययपदम्। अनु०-तत्, अस्य, अस्ति, अस्मिन्, इति, तप:सहस्राभ्याम् इति चानुवर्तते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003299
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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