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पञ्चमाध्यायस्य द्वितीय पादः उदा०-अनुपदी गवाम् । अनुपदी उष्ट्राणाम्।
आर्यभाषा: अर्थ- (अनुपदी) अनुपदी शब्द (इनि:) इनि-प्रत्ययान्त निपातित है (अन्वेष्टा) यदि वहां अन्वेष्टा-ढूंढ़नेवाला अर्थ अभिधेय हो।
उदा०-अनुपदी गवाम् । गौओं के पदचिह्नों पर चलनेवाला अर्थात् उन्हें ढूंढ़नेवाला। अनुपदी उष्ट्राणाम् । ऊंटों के पदचिह्नों पर चलनेवाला अर्थात् उन्हें ढूंढ़नेवाला। ___ सिद्धि-अनुपदी। अनुपद+सु+इनि। अनुपद्+इन् । अनुपदिन्+सु। अनुपदीन्+सु । अनुपदीन्+० । अनुपदी।
यहां 'अनुपद' शब्द में पदस्य पश्चात्-अनुपदम् 'अव्ययं विभक्ति०' (२।१।६) से पश्चात् अर्थ में अव्ययीभाव समास है। 'अनुपद' शब्द से अन्वेष्टा अर्थ में इस सूत्र से 'इनि' प्रत्यय निपातित है। शेष कार्य 'श्राद्धी' (५।२।८५) के समान है। इनिः
(७) साक्षाद् द्रष्टरि संज्ञायाम् ।६१। प०वि०-साक्षात् अव्ययपदम् (पञ्चम्यर्थे) द्रष्टरि ७१ संज्ञायाम् ७।१।
अनु०-तत्, इनिरित्यनुवर्तते।। अन्वय:-तत् साक्षाद् द्रष्टरि इनि: संज्ञायाम्।
अर्थ:-तद् इति प्रथमासमर्थात् साक्षात्-शब्दात् प्रातिपदिकाद् द्रष्टरि इत्यस्मिन्नर्थे इनि: प्रत्ययो भवति, संज्ञायामभिधेयायाम्।
। उदा०-साक्षाद् द्रष्टा-साक्षी। साक्षी। साक्षिणौ। साक्षिणः। अत्र संज्ञावचनाद् धनस्य दाता (उत्तमर्ण:) ग्रहीता (अधमर्ण:) च साक्षी न कथ्यतेऽपितु उपद्रष्टैव साक्षीत्युच्यते।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) प्रथमा-समर्थ (साक्षात्) साक्षात् प्रातिपदिक से (द्रष्टरि) द्रष्टा अर्थ में (इनि:) इनि प्रत्यय होता है (संज्ञायाम्) यदि वहां संज्ञा अर्थ अभिधेय हो।
उदा०-साक्षात् प्रत्यक्ष द्रष्टा देखनेवाला-साक्षी। यहां संज्ञा-वचन से धन का दाता-साहूकार तथा ग्रहीता-कर्जदार के द्रष्टा होने पर भी उन्हें साक्षी' नहीं कहते अपितु जो उपद्रष्टा उनके समीप प्रत्यक्षदर्शी पुरुष है, वही साक्षी' कहाता है।।
सिद्धि-साक्षी। साक्षात्+सु+इनि। साक्ष्+इन् । साक्षिन्+सु। साक्षीन्+सु । साक्षीन्+० । साक्षी।
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