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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-छन्दोऽधीते इति श्रोत्रियो ब्राह्मणः ।
आर्यभाषा: अर्थ-{१}-(छन्द:) वेद को (अधीते) पढ़ता है इस वाक्य के अर्थ में (श्रोत्रियन) 'श्रोत्रियन' यह शब्द निपातित है। {२}-अथवा 'छन्दः' शब्द के स्थान में श्रोत्र-आदेश, (अधीते) उस छन्द को पढ़ता है इस अर्थ में (घन्) घन् प्रत्यय निपातित है।
उदा०-जो छन्द को पढ़ता है वह-श्रोत्रिय ब्राह्मण। सिद्धि-श्रोत्रियः । छन्दस्+अम्+घन्। श्रोत्र+इय । श्रोत्रिय+सु । श्रोत्रियः ।
यहां द्वितीया-समर्थ छन्दस्' शब्द से अधीते-पढ़ता है अर्थ में इस सूत्र से घन्' प्रत्यय निपातित है। 'आयनेय०' (७।१।२) से 'घ्' के स्थान में इय्' आदेश और यस्येति च (६।४।१४८) से अंग के अकार का लोप होता है। 'श्रोत्रियन्' शब्द में नकार अनुबन्ध नित्यादिनित्यम्' (६।१।१९७) से आधुदात्त स्वर के लिये है-श्रोत्रियः ।
अनेन (तृतीया) अर्थप्रत्ययप्रकरणम् इनिः +ठन्
___ (१) श्राद्धमनेन भुक्तमिनिठनौ।८५ प०वि०-श्राद्धम् १।१ अनेन ३।१ भुक्तम् १।१ इनिठनौ १।२। स०-इनिश्च ठन् च तौ-इनिठनौ (इतरेतरयोगद्वन्द्व:) । अनु०-तद् इत्यनुवर्तते। अन्वय:-तत् श्राद्धाद् अनेन इनिठनौ भुक्तम्।
अर्थ:-तद् इति प्रथमासमर्थात् श्राद्धशब्दात् प्रातिपदिकाद् अनेन इति तृतीयार्थे इनिठनौ प्रत्यया भवतः, यत् प्रथमासमर्थं भुक्तं चेत् तद् भवति । श्राद्धशब्द: कर्मनामधेयम्, तस्मात्-तत्साधनाद् द्रव्ये वर्तमानात् प्रत्ययो विधीयते।
उदा०-श्राद्धं भुक्तमनेन-श्राद्धी (इनि:)। श्राद्धिक: (ठन्) ।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) प्रथमा-समर्थ (श्राद्ध) श्राद्ध प्रातिपदिक से (अनेन) तृतीया-विभक्ति के अर्थ में (इनिठनौ) इनि और ठन् प्रत्यय होते हैं (भुक्तम्) जो प्रथमा-समर्थ है यदि वह भुक्त खाना-पीना हो। श्राद्ध शब्द जीवित माता की श्रद्धापूर्वक सेवा-कर्म का वाचक है। अत: सेवा के साधन द्रव्यविशेष अर्थ में विद्यमान 'श्राद्ध' शब्द से प्रत्यय-विधान किया जाता है।
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