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पाणिनीय-अष्टाध्यायी- प्रवचनम्
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भवति, यद् द्वितीयासमर्थं ग्रहणं चेत् तद् भवति, इतिकरणो विवक्षार्थस्तेन ग्रन्थविषयकं ग्रहणमिष्यते ।
उदा०-द्वितीयेन रूपेण ग्रन्थं गृह्णाति - द्विकं ग्रहणम् (लुक्) । द्वितीयकं ग्रहणम् (लुङ् न ) । तृतीयेन रूपेण ग्रन्थं गृह्णाति - त्रिकं ग्रहणम् (लुक् ) । तृतीयकं ग्रहणम् (लुङ् न) । चतुर्थेन रूपेण ग्रन्थं गृह्णाति -चतुष्कं ग्रहणम् (लुक्) । चतुर्थकं ग्रहणम् (लुङ् न)।
आर्यभाषाः अर्थ-{तम्) द्वितीया-समर्थ ( तावतिथम् ) पूरण प्रत्ययान्त प्रातिपदिक से स्वार्थ में (कन्) कन् प्रत्यय होता है और ( लुक्, वा ) उस पूरणार्थक प्रत्यय का विकल्प से लोप होता है (ग्रहणम्) जो द्वितीया-समर्थ है यदि वह ग्रहण करना हो, (इति) इतिकरण विवक्षा के लिये है अतः यहां ग्रन्थ-विषयक ग्रहण करना ही अभीष्ट है।
उदा० - जो द्वितीय रूप से अर्थात् दूसरी बाद सुनकर ग्रन्थ को ग्रहण करता है (समझता ) है वह-द्विक ग्रहण ( लुक्) । द्वितीयक ग्रहण ( लुक् नहीं) । जो तृतीय रूप से अर्थात् तीसरी बार सुनकर ग्रन्थ को ग्रहण करता है वह त्रिक ग्रहण (लुक्) । तृतीयक ग्रहण (लुक् नहीं)। जो चतुर्थ रूप से अर्थात् चौथी बार सुनकर ग्रन्थ को ग्रहण करता है वह - चतुष्क ग्रहण (लुक्) । चतुर्थक ग्रहण (लुक् नहीं) ।
सिद्धि - (१) द्विकम् । द्वितीय + अम् +कन् । द्वि+क । द्विक+सु । द्विकम् ।
यहां द्वितीया-समर्थ, ग्रहणवाची 'द्वितीय' शब्द से स्वार्थ में 'कन्' प्रत्यय और पूरणार्थक 'तीय' प्रत्यय का लुक् नहीं होता है। ऐसे ही 'तृतीय' शब्द से - त्रिकम् । (२) द्वितीयकम् । यहां द्वितीय' शब्द से पूर्ववत् 'कन्' प्रत्यय और विकल्प पक्ष में पूरणार्थक 'तीय' प्रत्यय का लुक् नहीं होता है। ऐसे ही 'तृतीय' शब्द से - तृतीयकम् । (३) चतुष्कम् । चतुर्थ+अम्+कन् । चतुर्+क । चतुः+क। चतुस्+क। चतुष्+क । चतुष्क+सु । चतुष्कम् ।
और
यहां द्वितीया-समर्थ, ग्रहणवाची 'चतुर्थ' शब्द से स्वार्थ में इस सूत्र से 'कन्' प्रत्यय पूरण प्रत्यय डट् का सथुक् लुक् होता है। खरवसानयोर्विसर्जनीयः' (८1३ 1१५) से 'चतुर्' के रेफ को विसर्जनीय, 'विसर्जनीयस्य स:' ( ८ | ३ | ३४ ) से विसर्जनीयको सकार आदेश और 'इदुदुपधस्य चाप्रत्ययस्य' (८ | ३ | ४१) से षत्व होता है।
(४) चतुर्थकम् | यहां 'चतुर्थ' शब्द 'कन्' प्रत्यय और विकल्प पक्ष में पूरण प्रत्यय 'डट्' का लुक् नहीं होता है।
विशेषः 'तावतिथ' शब्द में 'वतोरिथुक्' (५/२/५३) से डट् प्रत्यय और वत्वन्त प्रातिपदिक को इथुक् आगम होता है । 'डट्' पूरणार्थक प्रत्यय है अतः यहां 'तावतिथ' शब्द से पूरण- प्रत्ययान्त शब्दों का ग्रहण किया जाता है 1
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