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________________ १६१ पञ्चमाध्यायस्य द्वितीय पादः उदा०- पन्था मार्ग के ज्ञान में कुशल-पथक । मार्ग-रास्ता जाननेवाला। सिद्धि-पथक: । पथिन्+डि+वुन् । पथ्+अक। पथक+सु। पथकः। यहां सप्तमी-समर्थ पथिन्' शब्द से कुशल अर्थ में इस सूत्र से 'वुन्' प्रत्यय है। युवोरनाकौं' (७।१।२) से वु' के स्थान में अक' आदेश और नस्तद्धिते' (६।४।१४४) से अंग के टि-भाग (इन्) का लोप होता है। कन् (२) आकर्षादिभ्यः कन्।६४। प०वि०-आकर्ष-आदिभ्य: ५।३ कन् ११ । स०-आकर्ष आदिर्येषां ते आकर्षादयः, तेभ्य:-आकर्षादिभ्यः (बहुव्रीहि:)। अनु०-तत्र कुशल इति चानुवर्तते। अन्वय:-तत्राऽऽकर्षादिभ्य: कुशल: कन्। अर्थ:-तत्र इति सप्तमी-समर्थेभ्य: आकर्षादिभ्य: प्रातिपदिकेभ्य: कुशल इत्यस्मिन्नर्थे कन् प्रत्ययो भवति। उदा०-आकर्षे कुशल:-आकर्षक: । त्सरौ कुशल:=त्सरुकः, इत्यादिकम्। आकर्ष। त्सरु । पिपासा। पिचण्ड। अशनि। अश्मन्। विचय । चय । जय । आचय। अय। नय। निपाद। गद्गद। दीप। हृद। ह्राद। ह्लाद। शकुनि। इति आकर्षादयः ।। आर्यभाषा: अर्थ-(तत्र) सप्तमी-समर्थ (आकर्षादिभ्यः) आकर्ष आदि प्रातिपदिकों से (कुशल) चतुर अर्थ में (कन्) कन् प्रत्यय होता है। उदा०-आकर्षकसौटी पर कसने में कुशल-आकर्षक। त्सरु-तलवार की मुंठ पकड़ने में कुशल-त्सरुक इत्यादि। सिद्धि-आकर्षक: । आकर्ष+डि+कन् । आकर्ष+क। आकर्षक+सु। आकर्षक: । यहां सप्तमी-समर्थ आकर्ष' शब्द से कुशल अर्थ में इस सूत्र से कन्' प्रत्यय है। ऐसे ही-त्सरुक: आदि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003299
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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