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________________ १७७ पञ्चमाध्यायस्य द्वितीय पादः आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) प्रथमा-समर्थ (संख्यायाः) संख्यावाची प्रातिपदिक से (अस्य) षष्ठी-विभक्ति के अर्थ में (मयट्) मयट् प्रत्यय होता है (गुणस्य निमाने) जो प्रथमा-समर्थ है यदि वह गुण=भाग के निमान मूल्य अर्थ में विद्यमान हो। उदा०-यव-जौओं का दो गुण (भाग) निमान मूल्य है इस एक तक्र (मट्ठा) भाग का यह-द्विमय तक। यव-जौओं का तीन गुण (भाग) निमान-मूल्य है इस एक तक्र भाग का यह त्रिमय तक। यव-जौओं का चार गुण (भाग निमान-मूल्य है इस एक तक्र भाग का यह-चतुर्मय तक। सिद्धि-द्विमयम् । द्वि+औ+मयट् । द्वि+मय। द्विमय+सु। द्विमयम् । यहां प्रथमा-समर्थ, गुण=भाग के निमान-मूल्य अर्थ में विद्यमान, संख्यावाची 'द्वि' शब्द से अस्य (षष्ठी) अर्थ में इस सूत्र से मयट्' प्रत्यय है। ऐसे ही-त्रिमयम्, चतुर्मयम् । विशेष: एक वस्तु से बदलकर दूसरी वस्तु लेना निमान कहाता था, जिसे आजकल अदला बदली कहते हैं। जो वस्तु दी जाती थी उसका, उस वस्तु के साथ जो ली जाती थी, मूल्य का आनुपातिक सम्बन्ध निश्चित करना पड़ता था, या तो दोनों वस्तुओं का मूल्य बराबर होता जैसे सेर भर गेहूं के बदले में सेर भर तिल लेना, किन्तु यदि दो सेर जौ देकर सेर भर मट्ठा मिले तो जौ का मूल्य मट्ठे के मूल्य से दुगना होगा। उस समय कहा जायेगा- 'द्विमयम् उदश्विद् यवानाम् (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० २३८)। परणार्थप्रत्ययप्रकरणम डट् ___ (१) तस्य पूरणे डट् ।४८ । प०वि०-तस्य ६१ पूरणे ७।१ डट् १।१। अनु०-संख्याया इत्यनुवर्तते।। कृवृत्ति:-पूर्यतेऽनेनेति-पूरणम् ‘करणाधिकरयोश्च' (३।३।११७) इति करणे कारके ल्युट् प्रत्यय: । अन्वय:-तस्य संख्याया: पूरणे डट् । अर्थ:-तस्य इति षष्ठीसमर्थात् संख्यावाचिन: प्रातिपदिकाद् पूरणेऽर्थे डट् प्रत्ययो भवति। उदा०-एकादशानां पूरण:-एकादश: । द्वादशः । आर्यभाषा: अर्थ-(तस्य) षष्ठी-समर्थ (संख्यायाः) संख्यावाची प्रातिपदिक से (पूरणे) पूरा करनेवाला अर्थ में (डट्) डट् प्रत्यय होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003299
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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