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________________ १७६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) प्रथमा-समर्थ (संख्यायाः) संख्यावाची (शदन्तविंशत:) शदन्त, विंशति प्रातिपदिकों से (च) भी (अस्मिन्) सप्तमी-विभक्ति के अर्थ में (ड:) ड प्रत्यय होता है (अधिकम्) जो प्रथमा-समर्थ है यदि वह अधिक हो। उदा०-(शदन्त) त्रिंशत्-तीस कार्षापण अधिक हैं इसमें यह-त्रिंश शत कार्षापण (१३० कार्षापण)। एकत्रिंशत् इकत्तीस कार्षापण अधिक हैं इसमें यह-एकत्रिंश शत कार्षापण। (१३१ कार्षापण)। एकचत्वारिंशत्-इकतालीस कार्षापण अधिक हैं इसमें यह-एकचत्वारिंश शत कार्षापण (१४१ कार्षापण)। (विंशति) बीस कार्षापण अधिक हैं इसमें यह-विंश शत कार्षापण (१२० कापिण)। कार्षापण=८० रत्ती सुवर्ण का सिक्का। ३२ रत्ती चांदी का सिक्का। ८० रत्ती ताम्बे का सिक्का। सिद्धि-(१) त्रिंशम् । त्रिंशत्+सु+ड। त्रिंश्+अ। त्रिंश+सु। त्रिंशम् । यहां प्रथमा-समर्थ, अधिकार्थक संख्यावाची, शदन्त त्रिंशत्' शब्द से अस्मिन् (सप्तमी) अर्थ में इस सूत्र से 'ड' प्रत्यय है। वा०-'डित्यभस्यापि टेर्लोप:' (६ ।४।१४३) से अंग के टि-भाग (अत्) का लोप होता है। ऐसे ही-एकत्रिंशत्, एकचत्वारिंशम् । (२) विंशम् । विंशति+सु+ड। विंश+अ। विंश+सु। विंशम् । यहां प्रथमा-समर्थ, अधिकार्थक, संख्यावाची विंशति' शब्द से अस्मिन् (सप्तमी) अर्थ में इस सूत्र से 'ड' प्रत्यय है। ति विंशतेर्डिति' (६।४।१४२) से 'विंशति' शब्द के ति-भाग का लोप होता है। अस्य (षष्ठी) अर्थप्रत्ययविधि: मयट् (१) संख्याया गुणस्य निमाने मयट् ।४७। प०वि०-संख्याया: ५।१ गुणस्य ६१ निमाने ७।१ मयट १।१। अनु०-‘तदस्य सञ्जातं तारकादिभ्य इतच्' (५।२।३६) इत्यस्मात्-तत्, अस्य इति चानुवर्तनीयम्। अन्वय:-तत् संख्याया अस्य मयट् गुणस्य निमाने। अर्थ:-तद् इति प्रथमासमर्थात् संख्यावाचिन: प्रातिपदिकाद् अस्येति षष्ठ्यर्थे मयट् प्रत्ययो भवति, यत् प्रथमासमर्थं गुणस्य निमानं चेत् तद् वर्तते । गुण:-भाग: । निमानम् मूल्यम् । उदा०-यवानां द्वौ गुणौ (भागौ) निमानमस्य तक्रगुणस्य (तक्रभागस्य) द्विभयं तक्रयवानम्। त्रिमयम्। चतुर्मयम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003299
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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