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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् . आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) प्रथमा-समर्थ (किमिदंभ्याम्) किम्, इदम् प्रातिपदिकों से (अस्य) षष्ठी-विभक्ति के अर्थ में (व्रतुप) वतुप् प्रत्यय होता है और उसके (व:) व के स्थान में (घ:) घ् आदेश होता है (परिमाणे) जो प्रथमा-समर्थ है यदि वह परिमाण (तोल) हो।
उदा०-(किम्) क्या है परिमाण इसका यह-कियत् (कितना)। (इदम्) यह है परिमाण इसका यह-इयत् ।
___ सिद्धि-(१) कियत् । किम्+सु+वतुप् । किम्+वत् । की+घत्। की+इयत् । क्+इयत्। कियत्+सु। कियत्।
यहां प्रथमा-समर्थ, परिमाणवाची 'किम्' शब्द से अस्य (षष्ठी) अर्थ में इस सूत्र से वतुप्' प्रत्यय है। इदंकिमोरीश्की ' (६।३।९०) से 'किम्' के स्थान में की' आदेश होता है। इस सूत्र से वतुप्' प्रत्यय के 'व' के स्थान में 'घ्' आदेश और उसे 'आयनेय०' (७।१।२) से 'इय' आदेश होकर यस्येति च (६।४।१४८) से अंग के ईकार का लोप होता है। पुंलिंग में कियान्' और स्त्रीलिंग में कियती' रूप बनता है।
(२) इयत् । इदम्+सु+वतुम् । इदम्+वत् । ईश्+वत् । ई+घत् । ई+इयत् । ०+इयत् । इयत्।
यहां प्रथमा-समर्थ, परिमाणवाची इदम्' शब्द से अस्य (षष्ठी) अर्थ में इस सूत्र से वतुप्' प्रत्यय है। इदंकिमोरीश्की ' (६।३।९०) से 'इदम्' के स्थान में ईश्' आदेश होता है। ईश्' में शकार अनुबन्ध 'अनेकाशित्सर्वस्य' (१।१।५५) से सवदिश के लिये है। इस सूत्र से 'वतुप्' प्रत्यय के व्' के स्थान में 'घ्' आदेश और उसे पूर्ववत् 'ईय' आदेश होकर यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के ईकार का लोप होता है। पुंलिंग में 'इयान्' और स्त्रीलिंग में इयती' रूप बनता है। डतिः+वतुप्
(६) किमः संख्यापरिमाणे डति च।४१।
प०वि०-किम: ५।१ संख्यापरिमाणे ७ १ डति ११ (सु-लुक्) च अव्ययपदम्।
स०-संख्याया: परिमाणमिति संख्यापरिमाणम्, तस्मिन्-संख्यापरिमाणे (षष्ठीतत्पुरुषः)। परिमाणम्=परिच्छेद इयत्तेत्यर्थः ।
अनु०-तत्, अस्य, वतुप्, व:, घ इति चानुवर्तते। अन्वय:-तत् संख्यापरिमाणे किमोऽस्य डतिर्वतुप् च ।
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