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पाणिनीय-अष्टाध्यायी प्रवचनम्
(३) मद्रकार :- पाणिनीय-अष्टाध्यायी में मद्र और भद्र दोनों पर्यायवाची शब्द हैं (२।३।७३, ५।४।६७ ) । अतः मद्रकार का ही दूसरा नाम भद्रकार ज्ञात होता है । सम्भव है घग्घर नदी के तट पर बीकानेर के उत्तरर-पूर्वी कोने में स्थित भद्र नामक स्थान मद्रकारों की प्राचीन राजधानी रही है ।
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(४) युगन्धर :- यमुना के तट पर चर्खा कातती हुई साल्वी स्त्रियों के कथनानुसार उनका राजा यौगन्धरि था :
यौगन्धरिरेव नो राजा
इति साल्वीरवादिषुः ।
विवृत्तचक्रा आसीना
इस पद्य-प्रमाण से ज्ञात होता है कि युगन्धर कहीं यमुना का तटवर्ती प्रदेश था । यह सम्भवतः अम्बाला जिले में सरस्वती से यमुना तट तक फैला हुआ था । युगन्धर का अपभ्रंश वर्तमान जगाधरी है।
तीरेण युमने तव । ।
(५) भूलिंग :- तोलेमी ने लिखा है कि अरावली के पश्चिम-उत्तर में बो - लिंगाई जाती रहती थी। इनकी पहचान भू-लिंगों से हो सकती है ।
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( ६ ) शरदण्ड :- रामायण के अनुसार केकय जाते समय शरदण्डा नदी पार करनी पड़ती थी (अयोध्या० ६८ । १६ ) । उसी शरदण्डा नदी के तट पर विराजमान होने से साल्वों के एक अवयव का नाम शरदण्ड पड़ा होगा। सम्भव है कि शरावती का ही दूसरा पर्याय नाम शरदण्डा हो । शरदण्डा और शरावती का अर्थ शरकण्डों वाली नदी है 1 शरावती कुरुक्षेत्र की वह नदी थी जिसे दृषद्वती भी कहा है । आजकल इसका नाम चितांग है
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( १९ ) प्रत्यग्रथ :- मध्यकाल के कोशों के अनुसार पंचाल (बरेली) का ही दूसरा नाम प्रत्यग्रथ था। जिसकी राजधानी अहिच्छत्रा थी ( वैजयन्ती पृ० २१४ ) । प्रत्यग्रथ में बहनेवाली नदी रथस्था ( रामगंगा ) थी । प्रत्यग्रथ और रथस्था का अभिप्राय समान है।
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(२०) अजाद :- इस जनपद का अष्टाध्यायी ( ४ । १ । १७९) में उल्लेख है। इस जनपद के नामकरण से ज्ञात होता है कि यह प्रदेश बकरियों के लिये प्रसिद्ध रहा होगा ( अजा+द: अजाद : ) । इटावा का प्रदेश आज तक बकरियों की नसल के लिये प्रसिद्ध है । अतः सम्भव है कि यही प्राचीन अजाद जनपद हो ।
(२१) काशि:- पाणिनि मुनि ने अष्टाध्यायी ( ४ । १ । ११६ ) में स्थान - नामों में काशि का उल्लेख किया है। जनपद का नाम काशि था और उसकी राजधानी वाराणसी
थी।
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