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________________ ५२३ चतुर्थाध्यायस्य चतुर्थः पादः अनु०-तत्, वहति इति चानुवर्तते। अन्वय:-तद् हलसीराद् वहति ठक् । अर्थ:-तद् इति द्वितीयासमर्थाभ्यां हलसीराभ्यां प्रातिपदिकाभ्यां वहतीत्यस्मिन्नर्थे ठक् प्रत्ययो भवति। उदा०- (हलम्) हलं वहति-हालिको गौः। (सीर:) सीरं वहति-सैरिको गौः। आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) द्वितीया-समर्थ (हलसीरात्) हल और सीर प्रातिपदिकों से (वहति) वहन करता है अर्थ में (ठक) ठक् प्रत्यय होता है। उदा०- (हल) जो हल को वहन करता है वह-हालिक बैल। (सीर) जो सीर हलविशेष को वहन करता है वह-सैरिक बैल। सिद्धि-हालिकः । हल+अम्+ठक् । हाल्+इक। हालिक+सु । हालिकः । यहां द्वितीया-समर्थ हल' शब्द से वहति अर्थ में इस सूत्र से ठक्' प्रत्यय है। किति च' (७।२।११८) से अंग को आदिवृद्धि और पूर्ववत् अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही-सैरिकः । यथाविहितम् (यत्) (७) संज्ञायां जन्याः ।८२। प०वि०-संज्ञायाम् ७।१ जन्या: । ५ ।१ । अनु०-तत्, वहति, यत् इति चानुवर्तते। अन्वय:-तद् जन्या वहति यत्, संज्ञायाम्। अर्थ:-तद् इति द्वितीयासमर्थाज्जनी-शब्दात् प्रातिपदिकाद् वहतीत्यस्मिन्नर्थे यथाविहितं यत् प्रत्ययो भवति, संज्ञायां गम्यमानायाम्। उदा०-जनीं वहति-जन्या जामातुर्वयस्या, सा हि जनीम् (वधूम्) विवाहादिषु जामातृसमीपं प्रापयति । आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) द्वितीया-समर्थ (जन्याः) जनी प्रातिपदिक से (वहति) प्राप्त कराती है अर्थ में (यत्) यथाविहित यत् प्रत्यय होता है (संज्ञायाम्) यदि वहां संज्ञा अर्थ की प्रतीति हो। उदा०-जो जनी (वधू) को विवाह आदि के समय जामाता के पास प्राप्त कराती है वह-जन्या। जामाता की सखी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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