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________________ ५२१ चतुर्थाध्यायस्य चतुर्थः पादः अनु०-तद्, वहति इति चानुवर्तते। अन्वय:-तत् सर्वधुराद् वहति खः । अर्थ:-तद् इति द्वितीयासमर्थात् सर्वधुरात् प्रातिपदिकाद् वहतीत्यस्मिन्नर्थे ख: प्रत्ययो भवति। उदा०-सर्वधुरां वहति-सर्वधुरीणो गौः । आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) द्वितीया-समर्थ (सर्वधुरात्) सर्वधुर प्रातिपदिक से (वहति) वहन करता है अर्थ में (ख:) ख प्रत्यय होता है। उदा०-सर्वधुर को जो वहन करता है (जुड़ता है) वह-सर्वधुरीण बैल। जो बैल जुए के दोनों ओर जुड़ सकता है वह-'सर्वधुरीण' कहाता है। सिद्धि-सर्वधुरीणः । सर्वधुर+अम्+ख। सर्वधु+ईन । सर्वधुरीण+सु । सर्वधुरीणः । यहां द्वितीया-समर्थ सर्वधुरा' शब्द से वहति अर्थ में इस सूत्र से 'ख' प्रत्यय है। 'आयनेय० (७।१।२) से 'ख' के स्थान में 'इन्' आदेश और 'अट्कुप्वाङ्' (८।४।२) से णत्व होता है। आर्यभाषा: 'धुर्' शब्द के स्त्रीलिङ्ग होने से 'सर्वधराया:' ऐसा सूत्रपाठ होना चाहिये किन्तु सर्वधुरात्' ऐसा पुंलिङ्ग निर्देश प्रातिपदिक मात्र की अपेक्षा से किया गया है। प्रत्ययस्य लुक्+खः (४) एकधुराल्लुक् च।७६ । प०वि०-एकधुरात् ५ ।१ लुक् ११ च अव्ययपदम्। स०-एका चासौ धूरिति एकधुरम्, तस्मात्-एकधुरात् (कर्मधारय:)। अत्र पूर्ववत् समासान्तोऽकारप्रत्यय: नपुंसकनिर्देशश्च । अनु०-तत्, वहति, ख इति चानुवर्तते। अन्वय:-तद् वहति खो लुक् च।। अर्थ:-तद् इति द्वितीयासमर्थाद् एकधुरात् प्रातिपदिकाद् वहतीत्यस्मिन्नर्थे ख: प्रत्ययो भवति, तस्य च लुग् भवति । उदा०-(ख:) एकधुरां वहति-एकधुरीणो गौः । (लुक्) एधुरो गौः । आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) द्वितीया-समर्थ (एकधुरात्) एकधुर प्रातिपदिक से (वहति) वहन करता है अर्थ में (ख:) ख प्रत्यय होता है और उसका (लुक्) लोप (च) भी होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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