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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) प्रथमा-समर्थ प्रातिपदिक से (अस्य) इसका अर्थ में (ठक्) यथाविहित ठक् प्रत्यय होता है (शिल्पम्) जो प्रथमा-समर्थ है यदि वह शिल्प= कौशल हो।
उदा०-मृदङ्ग (मुरज) बजाना शिल्प कौशल है इसका यह-मादीङ्गक । पणव (छोटा ढोल) बजाना शिल्प है इसका यह-पाणविक । वीणा (बीन) बजाना शिल्प है इसका यह-वैणिक।
सिद्धि-मार्दङ्गिकः । मृदङ्ग-सु+ठक् । मार्द+इक । मार्दङ्गिक+सु । मार्दङ्गिकः ।
यहां प्रथमा-समर्थ, शिल्पवाची मृदङ्ग' शब्द से अस्य (इसका) अर्थ में यथाविहित प्राग्वहतीय ठक्’ प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही-पाणविकः, वैणिकः।। अण्-विकल्प:- {शिल्पम् कौशलम्}
(६) मड्डुकझर्झरादणन्यतरस्याम्।५६। प०वि०-मड्डुक-झर्झरात् ५ ।१ अण् १।१ अन्यतरस्याम् अव्ययपदम् ।
स०-मड्डुकं च झर्झरं च एतयो: समाहारो मड्डुकझर्झरम्, तस्मात्-मड्डुकझर्झरात् (समाहारद्वन्द्वः) ।
अनु०-तत् अस्य, शिल्पम् इति चानुवर्तते। अन्वय:-तद् मड्डुकझर्झराभ्याम् अस्यान्तरस्याम् अण् ।
अर्थ:-तद् इति प्रथमासमर्थाभ्यां मड्डुकझर्झराभ्याम् अस्येति षष्ठ्यर्थे विकल्पेनाऽण् प्रत्ययो भवति, पक्षे च यथाविहितं ठक् प्रत्ययो भवति, यत् प्रथमासमर्थं शिल्पं चेत् तद् भवति ।
उदा०- (मड्डुकम्) मड्डुकवादनं शिल्पमस्य-माड्डुक: (अण्) । माड्डुकिक: (ठक्)। (झर्झरम्) झर्झरवादनं शिल्पमस्य-झाझर: (अण्) । झाझरिक: (ठक्)।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) प्रथमा-समर्थ (मड्डुकझर्झराभ्याम्) मड्डुक, झर्झर प्रातिपदिकों से (अस्य) इसका अर्थ में (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (अण्) अण् प्रत्यय होता है और पक्ष में (ठक्) यथाविहित ठक् प्रत्यय होता है (शिल्पम्) जो प्रथमा-समर्थ है यदि वह शिल्प हो।
उदा०-(मड्डुक) मड्डुक (डमरू) बजाना शिल्प है इसका यह-माड्डुक (अण्)। माड्डुकिक (ठक्) । (झर्झर) झर्झर (झांझ) बजाना शिल्प है इसका यह-झाझर (अण्)। झाझीरक (ठक्)।
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