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________________ ५०० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् स०-किशर आदिर्येषां ते किशरादयः, तेभ्य:-किशरादिभ्यः (बहुव्रीहिः)। अनु०-तत्, अस्य, पण्यम् इति चानुवर्तते। अन्वय:-तत् किशरादिभ्योऽस्य ष्ठन् पण्यम्। अर्थ:-तद् इति प्रथमासमर्थेभ्य: किशरादिभ्य: प्रातिपदिकेभ्योऽस्येति षष्ठ्यर्थे ष्ठन् प्रत्ययो भवति, यत् प्रथमासमर्थं पण्यं चेत् तद् भवति । किशरादयः शब्दा गन्धविशेषवाचका: सन्ति। उदा०-किशरं पण्यमस्य-किशरिक: । स्त्री चेत्-किशरिकी। नरदं पण्यमस्य-नरदिक: । स्त्री चेत्-नरदिकी इत्यादिकम् । किशर। नरद। नलद। सुमङ्गल। तगर। गुग्गुलु । उशीर । हरिद्रा। हरिद्रायणी। इति किशारादयः ।। आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) प्रथमा-समर्थ (किशरादिभ्यः) किशर-आदि प्रातिपदिकों से (अस्य) इसका अर्थ में (ष्ठन्) ष्ठन् प्रत्यय होता है (पण्यम्) जो प्रथमासमर्थ है यदि वह पण्य हो। किशर आदि शब्द गन्धविशेष के वाचक हैं। उदा०-किशर (गन्धविशेष) है पण्य इसका यह-किशरिक। यदि स्त्री हो तो-किशरिकी। नरद (गन्धविशेष) है पण्य इसका यह-नरदिक । यदि स्त्री हो तो-नरदिकी। सिद्धि-किशरिकः । किशर+सु+ष्ठन्। किश+इक । किशरिक+सु। किशरिकः । यहां प्रथमा-समर्थ, पण्यवाची 'किशर' शब्द से अस्य (इसका) अर्थ में इस सूत्र से 'ष्ठन्' प्रत्यय है। 'ठस्येकः' (७।३।५०) से ट्' के स्थान में 'इक्' आदेश और यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के अकार का लोप होता है। प्रत्यय के षित होने से षिद्गौरादिभ्यश्च' (४।१।४१) से स्त्रीत्व-विवक्षा में 'डीए' प्रत्यय होता है-किशरिकी। प्रत्यय के नित् होने से नित्यादिर्नित्यम्' (६।१।९४) से आधुदात्त स्वर होता है-किशरिकः । ऐसे ही-नरदिकः, नरदिकी आदि । विशेष: किशर आदि गन्धद्रव्यों के व्यापारी महाजनों को 'गान्धी' कहते हैं। ष्ठन्-विकल्प:- {पण्यम्) (४) शलालुनोऽन्यतरस्याम् ।५४। प०वि०-शलालुन: ५ ।१ अन्यतरस्याम् अव्ययपदम् । अनु०-तत्, अस्य, पण्यम् इति चानुवर्तते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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