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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-शुल्कशाला का जो धर्म्य है वह-शौल्कशालिक। आकर (खजाना) का जो धर्म्य है वह-आकरिक । आपण (दुकान) का जो धर्म्य है वह-आपणिक । गुल्म (जंगल) का जो धर्म्य वह-गौल्मिक।
सिद्धि-शौल्कशालिकम् । शुल्कशाला+डस्+ठक् । शौल्कशाल्+इक। शौल्कशालिक+सु । शौल्कशालिकम्।
यहां षष्ठी-समर्थ 'शुल्कशाला' शब्द से धर्म्य-न्याय्य (उचित देय) है अर्थ में इस सूत्र से यथाविहित प्राग्वहतीय ठक्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-आकरिकम् आदि। अण्
(२) अण् महिष्यादिभ्यः ।४८। प०वि०-अण् ११ महिषी-आदिभ्य: ५।३।
स०-महिषी आदिर्येषां ते महिष्यादयः, तेभ्य:-महिष्यादिभ्यः (बहुव्रीहिः)।
अनु०-तस्य, धर्म्यम् इति चानुवर्तते । अन्वय:-तस्य महिष्यादिभ्यो धर्म्यम् अण् ।
अर्थ:-तस्य इति षष्ठीसमर्थेभ्यो महिष्यादिभ्यः प्रातिपदिकेभ्यो धर्म्यमित्यस्मिन्नर्थेऽण् प्रत्ययो भवति ।
उदा०-महिष्या धर्म्यम्-माहिषम् । प्राजावतम् इत्यादिकम् ।
महिषी। प्रजावती। प्रलेपिका। विलेपिका । अनुलेपिका । पुरोहित । मणिपाली। अनुचारक। होतृ। यजमान। इति महिष्यादयः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(तस्य) षष्ठी-समर्थ (महिष्यादिभ्यः) महिषी आदि प्रातिपदिकों से (धर्म्यम्) धर्मयुक्त आचार अर्थ में (अण) अण् प्रत्यय होता है।
उदा०-महिषी (रानी) का जो धर्म्य=धर्मयुक्त आचार है वह-माहिष। प्रजावती का जो धर्म्य है वह-प्राजावत इत्यादि।
सिद्धि-माहिषम् । महिषी+डस्+अण् । माहिष्+अ। माहिष+सु। माहिषम् ।
यहां षष्ठी-समर्थ 'महिषी' शब्द से धर्म्य अर्थ में इस सूत्र से 'अण्' प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के ईकार का लोप होता है। ऐसे ही-प्राजावतम् आदि।
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