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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) द्वितीया-समर्थ (सेनायाः) सेना प्रातिपदिक से (समवैति) आकर उसका एकदेश बनता है अर्थ में (वा) विकल्प से (ण्य:) प्रत्यय होता है और पक्ष में (ठक्) यथाविहित ठक् प्रत्यय होता है।
उदा०-जो सेना में आकर उसका एकदेश बनता है वह-सैन्य (ण्य)। सैनिक (ठक्)।
सिद्धि-(१) सैन्यः । सेना+अम्+ण्य। सैन्+य। सैन्य+सु । सैन्यः ।
यहां द्वितीया-समर्थ 'सेना' शब्द से समवैति अर्थ में इस सूत्र से ‘ण्य' प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के आकार का लोप होता है।
(२) सैनिक: । यहां पूर्वोक्त सेना' शब्द से विकल्प-पक्ष में ठक्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
पश्यति-अर्थप्रत्ययविधिः यथाविहितम् (ठक)
(१) संज्ञायां ललाटकुक्कुट्यौ पश्यति।४६।
प०वि०-संज्ञायाम् ७।१ ललाट-कुक्कुट्यौ २।२ (पञ्चम्यर्थे)। पश्यति क्रियापदम्।
स०-ललाटं च कुक्कुटी च ते ललाटकुक्कुट्यौ (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । अनु०-तत्, ठक् इति चानुवर्तते। अन्वय:-तत् ललाटकुक्कुटीभ्यां पश्यति ठक् संज्ञायाम् ।
अर्थ:-तद् इति द्वितीयासमर्थाभ्यां ललाटकुक्कुटीभ्यां प्रातिपदिकाभ्यां पश्यतीत्यस्मिन्नर्थे यथाविहितं ठक् प्रत्ययो भवति, संज्ञायां गम्यमानायाम् । अत्र संज्ञाग्रहणं सेवकविशेषे भिक्षुविशेषे चार्थे नियमार्थं क्रियते।
उदा०-(ललाटम्) ललाटं पश्यति-लालाटिक: सेवकः । (कुक्कुटी) कुक्कुटीं पश्यति-कौक्कुटिको भिक्षुः (संन्यासी)।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) द्वितीया-समर्थ (ललाटकुक्कुट्यौ) ललाट और कुक्कुटी प्रातिपदिकों से (पश्यति) देखता है अर्थ में (ठक) यथाविहित ठक् प्रत्यय होता है (संज्ञायाम्) यदि वहां संज्ञा अर्थ की प्रतीति हो। यहां सेवक-विशेष और भिक्षु-विशेष (संन्यासी) अर्थ में संज्ञा-ग्रहण किया गया है, रूढ अर्थ में नहीं।
उदा०-(ललाट) जो स्वामी के ललाट को देखता है वह-लालाटिक सेवक ।
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