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________________ चतुर्थाध्यायस्य प्रथमः पादः सिद्धि-(१) दामा। दामन्+डाप्। दाम्+आ। दामा+सु। दामा। यहां मन्-अन्त दामन्’ प्रातिपदिक से इस सूत्र से 'डाप्' प्रत्यय है। प्रत्यय के डित् होने से 'वा०-डित्यभस्यापि टेर्लोप:' (६।४।१४३) से 'दामन्' के टि-भाग (अन्) का लोप होता है। विकल्प पक्ष में डाप्-प्रत्यय नहीं होता है-दामा। दामानौ । दामानः। (२) सुपर्वा । सु+पर्वन्+डाप्। सु+पर्वन्+आ। सुपर्वा+सु। सुपर्वा। पूर्ववत् । विकल्प पक्ष में 'डाप्' प्रत्यय नहीं होता है-सुपर्वा । सुपर्वाणौ । सुपर्वाणः । अनुपसर्जन-अधिकारः (१०) अनुपसर्जनात्।१४। प०वि०-अनुपसर्जनात् । ५।१।। स०-न उपसर्जनमिति अनुपसर्जनम्, तस्मात्-अनुपसर्जनात् (नञ्तत्पुरुषः)। अर्थ:-यदित ऊर्ध्वं वक्ष्याम: 'अनुपसर्जनात् तद् वेदितव्यमित्यधिकारोऽयम्। वक्ष्यति-'टिड्ढाणञ्' (४ ११ ।१५) इति डीप् प्रत्यय:कुरुचरी। मद्रचरी। स उपसर्जनान्न भवति-बहुकुरुचरा, बहुमद्रचरा मथुरा । वक्ष्यति-'जातेस्त्रीविषयादयोपधात्' (४।१।८३) इति ङीष्-प्रत्यय:कुक्कुटी। शूकरी। स उपसर्जनान्न भवति-बहुकुक्कुटा, बहुशूकरा मथुरा । ___ आर्यभाषा8 अर्थ-जो इससे आगे कहेंगे वह प्रत्यय (अनुपसर्गात्) अनुपसर्जन से होता है। यह अधिकार सूत्र है। जैसे 'टिड्ढाणञ्' (४।१।१५) से डीप् प्रत्यय कहा है, वह अनुपसर्जन प्रातिपदिक से होता है-कुरुचरी। मद्रचरी। वह उपसर्जन प्रातिपदिक से नहीं होता है-बहुकुरुचरा, बहुमद्रचरा मथुरा। जातेरस्त्रीविषयादयोपधात्' (४।१।६३) से डीप् प्रत्यय कहा है, वह अनुपसर्जन प्रातिपदिक से होता है-कुक्कुटी। शूकरी। वह उपसर्जन प्रातिपदिक से नहीं होता है-बहुकुक्कुटा, बहुशूकरा मथुरा। समास-विधायक सूत्रों में जो प्रथमा विभक्ति से निर्दिष्ट सुबन्त है उसकी प्रथमानिर्दिष्टं समास उपसर्जनम्' (१।२।४३) से उपसर्जन संज्ञा होती है। 'अनेकमन्यपदार्थे' (२।२।२४) से विहित बहुव्रीहि समास में दोनों पदों की उपसर्जन संज्ञा होती है क्योंकि अनेकम्' पद प्रथमा विभक्ति से निर्दिष्ट है। बहुकुरुचरा, बहुमद्रचरा। यहां बहवो कुरुचरा यस्यां सा बहुकुरुचरा मथुरा। यहां कुरुचर' शब्द बहुव्रीहिसमास में आ जाने से उपसर्जन-संज्ञक है। अत: उससे 'टिड्ढाणञ्' (४।१।१५) से विहित डीप स्त्रीप्रत्यय नहीं होता है, अपितु वह अनुपसर्जन से होता है-कुरुचरी। मद्रचरी। ऐसे ही-बहुकुक्कुटा, बहुशूकरा मथुरा आदि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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