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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(ठ) श्वगण (कुत्तों का झुण्ड) को साथ लेकर जो घूमता है वह-श्वागणिक (शिकारी)। यदि स्त्री हो तो-श्वागणिकी। (ष्ठन्) श्वगण को साथ लेकर जो घूमता है वह-श्वगणिक (शिकारी)। यदि स्त्री हो तो-श्वगणिकी।
सिद्धि-(१) श्वागणिकः । श्वगण+टा+ठञ् । श्वागण+इक। श्वागणिक+सु। श्वागणिकः ।
यहां तृतीया-समर्थ 'श्वगण' शब्द से चरति अर्थ में इस सूत्र से ठञ्' प्रत्यय है। पूर्ववत् ' के स्थान में 'इक्' आदेश, अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। स्त्रीत्व-विवक्षा में 'टिड्ढाणञ्०' (४।१।१५) से डीप् प्रत्यय होता है-श्वागणिकी। श्वादेरित्रि' (७।३ १८) इस सूत्र पर वा०-'इकारादिग्रहणं कर्तव्यं श्वागणिकाद्यर्थम् इस वार्तिक-सूत्र से द्वारादीनां च' (७/३।४) से प्राप्त आदिवृद्धि का प्रतिषेध एवं ऐच आगम नहीं होता है।
(२) श्वगणिकः । यहां तृतीय-समर्थ श्वगण' शब्द से चरति अर्थ में ष्ठन् प्रत्यय है। प्रत्यय के 'षित्' होने से स्त्री-विवक्षा में षिद्गौरादिभ्यश्च' (४।१।४१) से डीए' प्रत्यय होता है-श्वगणिकी। ठञ्-पक्ष में डीप्' का 'अनुदातौ सुपितौ' (३।१।३) से अनुदान स्वर होता है-श्वागणिकी और ष्ठन्-पक्ष में डीए प्रत्यय का 'आधुदात्तश्च (३।१३) से आधुदात्त स्वर होता है-श्वगणिकी।
जीवति-अर्थप्रत्ययविधिः यथाविहितम् (ठक)
(१) वेतनादिभ्यो जीवति।१२। प०वि०-वेतन-आदिभ्य: ५।३ जीवति क्रियापदम् । स०-वेतन आदिर्येषां ते वेतनादय:, तेभ्य:-वेतनादिभ्य: (बहुव्रीहिः)। अनु०-तेन, ठक् इति चानुवर्तते। अन्वय:-तेन वेतनादिभ्यो जीवति ठक्।
अर्थ:-तेन इति तृतीयासमर्थेभ्यो वेतनादिभ्यः प्रातिपदिकेभ्यो जीवतीत्यस्मिन्नर्थे ठक् प्रत्ययो भवति।
उदा०-वेतनेन जीवति-वैतनिकः। वाहेन जीवति-वाहिक: इत्यादिकम्।
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