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________________ चतुर्थाध्यायस्य तृतीयः पादः ४५५ हो जाता है। तत्पश्चात् स्त्रीलिङ्ग जम्बू शब्द का फल-अभिधेय के अनुसार नपुंसक लिङ्ग होता है । अत: 'ह्रस्वो नपुंसके प्रातिपदिकस्य' (१/२/४७ ) से 'जम्बू' शब्द को ह्रस्व होता है- जम्बु । 'स्वमोर्नपुंसकात्' (७/१/२३) से 'सु' प्रत्यय का लोप हो जाता है। प्रत्ययस्य लुप्-विकल्पः (३२) लुप् च । १६४ | प०वि० - लुप् १ ।१ च अव्ययपदम् । अनु०-तस्य, विकार:, अवयवे, च, फले, जम्ब्वा, वा इति चानुवर्तते । अन्वयः-तस्य जम्ब्वा अवयवे विकारे च प्रत्ययस्य वा लुप् च, फले । अर्थः तस्य इति षष्ठीसमर्थाज् जम्बू - शब्दात् प्रातिपदिकाद् अवयवे विकारे चार्थे विहितप्रत्ययस्य विकल्पेन लुबपि भवति, फलेऽभिधेये । उदा०-जम्ब्वा अवयवो विकारो वा - जाम्बवं फलम् (अण्) । जम्बू फलम् ( अञ् - लुक् ) । जम्बूः फलम् ( अञ् - लुप्) । आर्यभाषाः अर्थ- (तस्य) षष्ठी-समर्थ (जम्ब्वा:) जम्बू प्रातिपदिक से (अवयवे) अवयव (च) और (विकार:) विकार अर्थ में यथाविहित प्रत्यय का (वा) विकल्प से (लुप्) लुप् (च) भी होता है (फले) यदि वहां फल अर्थ अभिधेय हो । उदा०-जम्बू (जामुन) का अवयव वा विकार - जाम्बव फल (अण् ) । जम्बू फल ( अञ् प्रत्यय का लुक्) । जम्बू फल ( अञ्-प्रत्यय का लुप्) । सिद्धि - जम्बू : ( फलम् ) । जम्बू+ङस् +अञ् । जम्बू+0 | जम्बू+सु । जम्बूः । यहां षष्ठी - समर्थ 'जम्बू' शब्द से अवयव और विकार अर्थ में तथा फल अर्थ अभिधेय में इस सूत्र से विकल्प से प्रत्यय का लुप्-विधान किया गया है। यहां 'ओरञ्' (६।४।१४६) से प्राप्त 'अञ्' प्रत्यय का लुप् होता है। प्रत्यय का लुप् हो जाने पर लुपि युक्तवद् व्यक्तिवचने (१121५१) से 'जम्बू' शब्द से व्यक्ति (लिङ्ग) और वचन युक्तवत् (पूर्ववत् ) रहते हैं । अतः लुप्-पक्ष में जम्बू' शब्द स्त्रीलिङ्ग ही रहता है, फल- अभिधेय का अनुसरण नहीं करता है । 'जाम्बवं फलम्' और 'जम्बू फलम्' की सिद्धि पूर्ववत् (४।३।१६३ ) है । प्रत्ययस्य लुप् (३३) हरीतक्यादिभ्यश्च ॥ १६५ ॥ प०वि०- हरीतकि- आदिभ्यः ५ । ३ च अव्ययपदम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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