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चतुर्थाध्यायस्य प्रथमः पादः (४) परलोकदृश्वरी। परलोक+अम्+दृश्+क्वनिप्। परलोक+दृश्+वन् । परलोकदृश्वन्+डी । परलोकदृश्वर्+ई। परलोकदृश्वरी+सु। परलोकदृश्वरी।
यहां प्रथम परलोक उपपद होने पर दृशिर् प्रेक्षणे' (भ्वा०प०) धातु से दृशे: क्वनिप्' (३।२।९४) से क्वनिप्' प्रत्यय होता है। तत्पश्चात् 'परलोकदृश्वन्' शब्द से इस सूत्र से डीप्' प्रत्यय और वन्' के न्' को 'र' आदेश होता है। डीप-विकल्पः
(४) पादोऽन्यतरस्याम्।८। प०वि०-पाद: ५ ।१ अन्यतरस्याम् अव्ययपदम् । अनु०-डीप् इत्यनुवर्तते। अन्वयः-पाद: स्त्रियाम् अन्यतरस्यां ङीप् । अर्थ:-पादन्तात् प्रातिपदिकात् स्त्रियां विकल्पेन डीप् प्रत्ययो भवति । उदा०-द्विपात् । द्विपदी। त्रिपात् । त्रिपदी। चतुष्पात्। चतुष्पदी।
आर्यभाषा: अर्थ-(पाद:) पाद जिसके अन्त में है उस प्रातिपदिक से (स्त्रियाम्) स्त्रीलिङ्ग में (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (डीप्) डीम् प्रत्यय होता है।
उदा०-द्विपात् । द्विपदी। दो चरणोंवाली। त्रिपात् । त्रिपदी। तीन चरणोंवाली। चतुष्पात् । चतुष्पदी । चार चरणोंवाली।
सिद्धि-(१) द्विपात् । द्वौ पादौ यस्याः सा द्विपात् (बहुव्रीहिः)। यहां 'पादस्य लोप:०' की अनुवृत्ति में संख्यासुपूर्वस्य' (५।४।१४०) से 'पाद' शब्द के अकार का समासान्त लोप होता है। यहां विकल्प पक्ष में 'डीप्' प्रत्यय नहीं है।
(२) द्विपदी। द्विपात्+डीप्। द्विपत्+ई। द्विपदी+सु। द्विपदी।
यहां पूर्ववत् पाद शब्द के अकार का लोप होकर 'द्विपात्' प्रातिपदिक से इस सूत्र से 'डीप्' प्रत्यय होता है। पाद: पत्' (६।४।१३०) से 'पात्' के स्थान में पत्' आदेश होता है। ऐसे ही-त्रिपात्, त्रिपदी आदि। टाप् (ऋचि)
(५) टाबृचि।६। प०वि०-टाप् ११ ऋचि ७।१ । अनु०-डीप्, पाद इति चानुवर्तते। अन्वय:-पाद: स्त्रियां टाप् ऋचि।
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