SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 471
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् यहां षष्ठी-समर्थ 'पलाश' शब्द से अवयव वा विकार अर्थ में इस सूत्र से 'अञ्' प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही-खादिरम् । यहां नित्यादिनित्यम् (६।४।९४) से आधुदात्त स्वर होता है-पालोशम्। ऐसे ही-खादिरम् । (२) पालशम् । यहां विकल्प पक्ष में प्राग्दीव्यतोऽण् (४।१।८३) से प्राग्दीव्यतीय 'अण्' प्रत्यय करने पर भी पालाशम्’ पद सिद्ध होता है किन्तु यहां आधुदात्तश्च (३।११३) से 'अण्' प्रत्यय के आधुदात्त स्वर होने से पद का अन्तोदात्त स्वर होता है-पालाशम् । ऐसे ही-खादिरम्। ट्लञ् (८) शम्याष्ट्ल ञ्।१४०। प०वि०-शम्या: ५।१ ट्लञ् १।१ । अनु०-तस्य, विकार:, अवयवे च इति चानुवर्तते । अन्वय:-तस्य शम्या अवयवे विकारे च ट्लञ् । अर्थ:-तस्य इति षष्ठीसमर्थाच्छमी-शब्दात् प्रातिपदिकाद् अवयवे विकारे चार्थे ट्लञ् प्रत्ययो भवति। उदा०-शम्या अवयवो विकारो वा शामीलं भस्म । शामीली सुक्। 'चातुर्मास्ये वरुणप्रघासेषु शमीमय्य: स्रुचो भवन्तीति श्रुतम्' इति पदमञ्जर्यां पण्डितहरदत्तमिश्रः। आर्यभाषा अर्थ-(तस्य) षष्ठी-समर्थ (शम्या:) शमी प्रातिपदिक से (अवयवे) अवयव (च) और (विकार:) विकार अर्थ में (ट्लञ्) प्रत्यय होता है। उदा०-शमी (जांटी) वृक्ष का अवयव वा विकार-शामिल भस्म। शामीली सुक (आहुति की चमस)। सिद्धि-(१) शामिलम् । शमी+डस्+ट्लञ् । शामी+ल। शामील+सु। शामीलम् । यहां षष्ठी-समर्थ 'शमी' शब्द से अवयव वा विकार अर्थ में इस सूत्र से ट्लञ्' प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि होती है। शमी' शब्द षिद्गौरादिभ्यश्च' (४।१।४१) से ङीष्-प्रत्ययान्त है। 'आयुदात्तश्च (३।१।३) से प्रत्यय के आधुदात्त होने से शमी' शब्द अनुदात्तादि है। 'अनुदात्तेरश्च' (४।३।१३८) से यहां 'अञ्' प्रत्यय प्राप्त था। यह सूत्र उसका अपवाद है। (२) शामीली। यहां स्त्रीत्व-विवक्षा में 'टिट्ढाण (४।१।१५) से डीप् प्रत्यय होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy