________________
४२२
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ-(तस्य) षष्ठी-समर्थ (शाकलात्) शाकल प्रातिपदिक से (इदम्) यह अर्थ में (वा) विकल्प से (अण्) अण् प्रत्यय होता है (सङ्घाकलक्षणेषु) जो इदम्= यह' है यदि वह संघ, अंक वा लक्षण हो।
उदा०-शकल का गोत्रापत्य-शाकल्य, शाकल्य आचार्य के द्वारा प्रोक्त ग्रन्थ-शाकल। शाकल्य आचार्य के द्वारा प्रोक्त ग्रन्थ के अध्येता (छात्र)-शाकल। शाकलजनों का संघ, अंक वा लक्षण-शाकल वा शाकलक कहाता है।
सिद्धि-(१) शाकलम् । शकल+यञ् । शाकल्+य। शाकल्य।। शाकल्य+अण् । शाकल्+अ। शाकल।। शाकल+अण् । शाकल+० । शाकल।। शाकल+अण् । शाकल्+अ। शाकल+जस् । शाकलाः।
यहां प्रथम 'शकल' शब्द से गर्गादिभ्यो यज्ञ (४११०५) से गोत्रापत्य अर्थ में यञ्' प्रत्यय करने पर 'शाकल्य' शब्द सिद्ध होता है। शाकल्य' शब्द से कण्वादिभ्यो गोत्रे (४।१।१११) से प्रोक्त अर्थ में 'अण्' प्रत्यय करने पर तथा 'आपत्यस्य च तद्धितेऽनाति (६।४।१५१) से यकार का लोप होने पर शाकल' शब्द बनता है। शाकल' शब्द से तदधीते तवेद (४॥२॥५९) से अध्येता-वेदिता अर्थ में 'अण' प्रत्यय होता है और उसके प्रोक्तार्थक होने से प्रोक्ताल्लुक' (४।२।१११) से 'अण्' प्रत्यय का लोप हो जाता है। तत्पश्चात् उस षष्ठी-समर्थ, चरणवाची 'शाकल' शब्द से इदम् (संघ, अंक, लक्षण) अर्थ में इस सूत्र से 'अण्' प्रत्यय होता है। पूर्ववत् अंग को पर्जन्यवत् आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है।
(२) शाकलकम् । यहां षष्ठी-समर्थ चरणवाची 'शाकल' शब्द से इदम् (संघ, अंक, लक्षण) अर्थ में विकल्प पक्ष में गोत्रचरणाद् वु' (४।३।१२६) से 'वुञ्' प्रत्यय है। पूर्ववत् वु' के स्थान में 'अक' आदेश होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
विशेष: शाकल-शाकल्य आचार्य ने ऋग्वेद का पदपाठ बनाया था जिसका पाणिनि में उल्लेख है (सम्बुद्धौ शाकल्यस्येतावनार्षे १।१।१६) । शाकल प्रोक्त शाखा का अध्ययन करनेवाले विद्वानों का भी (४।३।१२८) सूत्र में उल्लेख है। इसे शाकल चरण कहते थे, शाकलेन प्रोक्तमधीयते-शाकला: ऋक्संहिता का वर्तमान संस्करण शाकल शाखा का है (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० ३१४)। ज्य:
(६) छन्दोगौक्थिकयाज्ञिकबचनटाञ्यः।१२। प०वि०-छन्दोग-औक्थिक-याज्ञिक-बढच-नटात् ५।१ ज्य: १।१।
स०-छन्दोगश्च औक्थिकश्च याज्ञिकश्च बढचश्च नटश्च एतेषां समाहार:-छन्दोगौक्थिकयाज्ञिकबढ्चनटम्, तस्मात्-छन्दोगौक्थिकयाज्ञिकबढ्चनटात् (समाहारद्वन्द्वः) ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org