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________________ चतुर्थाध्यायस्य तृतीयः पादः ૬ अनु०-तत्र, भव इति चानुवर्तते। अन्वय:-तत्र कर्णललाटाद् भव: कन् अलङ्कारे। अर्थ:-तत्र इति सप्तमीविभक्तिसमर्थाभ्यां कर्णललाटाभ्यां प्रातिपदिकाभ्यां भव इत्यस्मिन्नर्थे कन् प्रत्ययो भवति, अलङ्कारेऽभिधेये। उदा०-(कर्ण:) कर्णे भवा कर्णिका। (ललाटम्) ललाटे भवा ललाटिका। आर्यभाषा: अर्थ-(तत्र) सप्तमी-विभक्ति-समर्थ (कर्णललाटात्) कर्ण, ललाट प्रातिपदिकों से (भव:) भव अर्थ में (कन्) कन् प्रत्यय होता है (अलकारे) यदि वहां अलंकार आभूषण अर्थ अभिधेय हो। उदा०-(कर्ण) कर्ण में होनेवाला अलंकार-कर्णिका (कानों की बाळी)। (ललाट) ललाट माथे पर होनेवाला अलंकार-ललाटिका (माथे का आभूषण-बोरला आदि)। सिद्धि-कर्णिका । कर्ण+डि+कन् । कर्ण+क। कर्णक+टाप् । कर्णिक+आ। कर्णिका+सु। कर्णिका। यहां सप्तमी-समर्थ 'कर्ण' शब्द से भव अर्थ में तथा अलंकार अभिधेय में इस सूत्र से कन्' प्रत्यय है। स्त्रीत्व-विवक्षा में 'अजाद्यतष्टा (४।१।४) से टाप्' प्रत्यय और प्रत्ययस्थात०' (७।३।४४) से 'क' से पूर्ववर्ती 'अ' को इकार आदेश होता है। ऐसे ही-ललाटिका। भव-व्याख्यानार्थप्रत्ययप्रकरणम यथापिहितं प्रत्ययः(१) तस्य व्याख्यान इति च व्याख्यातव्यनाम्नः।६६। प०वि०-तस्य ६१ व्याख्याने ७१ इति अव्ययपदम्, च अव्ययपदम्, व्याख्यातव्यनाम्न: ५।१। स०-व्याख्यातव्यस्य नाम इति व्याख्यातव्यनाम, तस्मात्व्याख्यातव्यनाम्न: (षष्ठीतत्पुरुषः)। अनु०-तत्र, भव इति चानुवर्तते। अन्वय:-तस्य, तत्र व्याख्यातव्यनाम्नो व्याख्याने भव इति च यथाविहितं प्रत्ययः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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