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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी- प्रवचनम् उदा० - संस्कृत भाग में देख लेवें । अर्थ इस प्रकार है- श्रविष्ठा नक्षत्र में उत्पन्न हुआ - श्रविष्ठ । फल्गुनी नक्षत्र में उत्पन्न हुआ- फल्गुन । अनुराधा नक्षत्र में उत्पन्न हुआ- अनुराध | स्वाति नक्षत्र में उत्पन्न हुआ-स्वाति । तिष्य नक्षत्र में उत्पन्न हुआ-तिष्य । पुनर्वसु नक्षत्र में उत्पन्न हुआ - पुनर्वसु । हस्त नक्षत्र में उत्पन्न हुआ- हस्त । विशाखा नक्षत्र में उत्पन्न हुआ- विशाख । अषाढा नक्षत्र में उत्पन्न हुआ- अषाढ । बहुला नक्षत्र में उत्पन्न हुआ-बहुल । सिद्धि-श्रविष्ठः । श्रविष्ठा+डि+अण् । श्रविष्ठा+अ । श्रविष्ठ +० । श्रविष्ठ+सु । श्रविष्ठः । यहां सप्तमी समर्थ 'श्रविष्ठा' शब्द से जात अर्थ में 'प्राग्दीव्यतोऽण्' (४/१/८३ ) से यथाविहित 'अण्' प्रत्यय होता है। इससे उस 'अण्' प्रत्यय का लुक् हो जाता है। 'लुक् तद्धितलुकिं' (१।२।४९) से तद्धित 'अण्' प्रत्यय का लुक् होने पर श्रविष्ठा में विद्यमान स्त्रीप्रत्यय 'टाप्' का भी लुक् हो जाता है। ऐसे ही 'फल्गुन:' आदि । ३३४ विशेषः (१) २८ नक्षत्रों का विवरण फल्गुनीप्रोष्ठपदानां च नक्षत्रे ( १/२/६०) के प्रवचन में देख लेवें । (२) 'तिष्य' शब्द 'पुष्य' नक्षत्र का पर्यायवाची है । (३) बहुला' शब्द 'कृत्तिका' नक्षत्र का पर्यायवाची है । 'कृत्तिकापर्यायस्य बहुलाशब्दस्यात्र द्वन्द्वैकवद्भावेन नपुंसकहस्वत्वेन निर्देश:' ( पदमञ्जर्यं पण्डितहरदत्तमिश्रः) । (४) फल्गुनी, पुनर्वसु और विशाखा नामक दो-दो नक्षत्र हैं। अतः इनका द्विवचन में प्रयोग किया जाता है। फल्गुनीप्रोष्ठपदानां नक्षत्रे' (१/२/६० ) से 'फल्गुनी' में बहुवचन भी होता है। प्रत्ययस्य लुक् - (११) स्थानान्तगोशालखरशालाच्च । ३५ । प०वि०-स्थानान्त-गोशाल - खरशालात् ५ ।१ च अव्ययपदम् । स० स्थानमन्ते यस्य तत् स्थानान्तम् । गवां शालेति गोशालम् । खराणां शालेति खरशालम् । विभाषा सेनासुराच्छायाशालानिशानाम्' (२।४।२५) इति शालान्तस्य विभषा नपुंसकत्वम् । स्थानान्तं च गोशालं च खरशालं च एतेषां समहारः स्थानान्तगोशालखरशालम्, तस्मात्स्थानान्तगोशालखरशालात् ( समाहारद्वन्द्वः ) । अनु० - तत्र, जातः, लुगिति चानुवर्तते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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