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________________ ३०७ चतुर्थाध्यायस्य तृतीयः पादः आर्यभाषा: अर्थ-(तस्मिन्) उस (अणि) अण् प्रत्यय (च) और खञ् प्रत्यय के परे होने पर (युस्मदस्मदो:) युष्मद् और अस्मद् के स्थान में यथासंख्य (युष्माकास्माकौ) युष्माक और अस्माक आदेश होते हैं। उदा०-(युस्मद्) युस्मासु जातो यौष्पाकः (अण्) । यौष्माकीण: (ख)। तुम में उत्पन्न हुआ-यौष्माक, यौष्माकीण। (अस्मद्) अस्मासु जात आस्माक: (अण्)। आस्माकीन: (खञ्)। हम में उत्पन्न हुआ-आस्माक, आस्माकीन। सिद्धि-यौष्माक:, यौष्माकीणः, आस्माकः, आस्माकीन: इन पदों की सिद्धि पूर्व सूत्र के प्रवचन में देख लेवें। तवक-ममकादेशौ (५७) तवकममकावेकवचने।३। प०वि०-तवक-ममकौ १।२ एकवचने ७१। स०-तवकश्च ममकश्च तौ तवकममको (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। अनु०-युष्मदस्मदो:, खञ्, तस्मिन्, अणि च इति चानुवर्तते। अन्वय:-तस्मिन्नणि च एकवचने युष्मदस्मदोस्तवकममकौ । अर्थ:-तस्मिन्नणि खञि च प्रत्यये परत एकवचनपरयोर्युष्मदस्मदो: स्थाने यथासंख्यं तवकममकावादेशौ भवतः। उदा०- (युष्मद्) तव इदं तावकम् (अण्)। तावकीनम् (खञ्) । (अस्मद्) मम इदं मामकम् (अण्)। मामकीनम् (खञ्) । आर्यभाषा अर्थ-(तस्मिन) उस (अणि) अण (च) और (ख) खञ् प्रत्यय के परे होने पर (एकवचने) एकवचन-परक (युष्मदस्मदो:) युष्मद् और अस्मद् के स्थान में यथासंख्य (तवकममकौ) तवक और ममक आदेश होते हैं। उदा०-(युष्मद्) तव इदं तावकम् (अण) । तावकीनम् (खा) । तेरा यह-तावक। तेरा यह-तावकीन। (अस्मद्) मम इदं मामकम् (अण)। मामकीनम् (ख)। मेरा यह-मामक । मेरा यह-मामकीन। सिद्धि-(१) तावकम् । युष्मद्+डस्+अण्। तावक्+अ। तावक-सु। तावकम्। यहां षष्ठी-समर्थ 'युष्मद्' शब्द से शेष अर्थों में 'युष्मदस्मदोरन्यतरस्यां खञ् च' (४।३।१) से 'अण्' प्रत्यय करने पर इस सूत्र से एकवचन में, युष्मद्' के स्थान में तवक' आदेश होता है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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