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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(केश:) केशानां समूह: कैश्यम्, कैशिकं वा। (अश्व:) अश्वानां समूहोऽश्वीयम्, आश्वं वा।
आर्यभाषा: अर्थ-(तस्य) षष्ठी-समर्थ (केशाश्वाभ्याम्) केश और अश्व प्रातिपदिकों से (समूह:) समूह अर्थ में यथासंख्य (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (यञ्छौ) यञ् और छ प्रत्यय होते हैं।
उदा०-(केश) केशानां समूह: कैश्यम्, कैशिकं वा । केश बालों का समूह-कैश्य वा कैशिक। (अश्व) अश्वानां समूहोऽश्वीयम्, आश्वं वा । अश्व-घोड़ों का समूह-अश्वीय वा आश्व।
सिद्धि-(१) कैश्यम् । केश+आम्+यञ् । कैश्+य। कैश्य+सु। कैश्यम् ।
यहां षष्ठीसमर्थ केश' शब्द से समूह अर्थ में इस सूत्र से यज्' प्रत्यय है। 'तद्धितेष्वचामादेः' (७।२।११७) से अंग को आदिवृद्धि और 'यस्येति च (६।४।१४८) से अंग के अकार का लोप होता है।
(२) कैशिकम् । यहां केश' शब्द से 'अचित्तहस्तिधेनोष्ठक् (४।२।४७) से अचित्त लक्षण ठक्' प्रत्यय है। किति च' (७।२।११८) से अंग को आदिवृद्धि होती है।
(३) अश्वीयम् । अश्व+आम्+छ। अश्व+ईय। अश्वीय+सु। अश्वीयम्। ___ यहां षष्ठीसमर्थ 'अश्व' शब्द से समूह अर्थ में इस सूत्र से 'छ' प्रत्यय है। आयनेय०' (७।१।२) से छ्' के स्थान में ईय्' आदेश होता है।
(४) आश्वम् । यहां षष्ठीसमर्थ 'अश्व' शब्द से प्राग्दीव्यतोऽण् (४।१९८३) से उत्सर्ग 'अण्' प्रत्यय होता है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अकार का लोप होता है। यः
(१३) पाशादिभ्यो यः।४८| प०वि०-पाश-आदिभ्य: ५।३ य: १।१ । स०-पाश आदिर्येषां ते पाशादय:, तेभ्य: पाशादिभ्य: (बहुव्रीहिः) । अनु०-तस्य, समूह इति चानुवर्तते। अन्वय:-तस्य पाशादिभ्य: समूहो यः।
अर्थ:-तस्य इति षष्ठीसमर्थेभ्य: पाशादिभ्य: प्रातिपदिकेभ्य: समूह इत्यस्मिन्नर्थे य: प्रत्ययो भवति ।
उदा०-पाशानां समूह: पाश्या । तृणानां समूहस्तृण्या । वातानां समूहो वात्या।
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