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________________ २०६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् समूह-छान्दोग्य। औथिकानां समूह औक्थिक्यम् । औक्थिकों का समूह-औक्थिक। आथर्वणिकानां समूह आथर्वणम् । आथर्वणिकों का समूह-आथर्वण। सिद्धि-(१) काठकम् । कठ+आम्+वुञ् । काठ्+अक । काठक+सु । काठकम्। यहां षष्ठीसमर्थ, चरणविशेषवाची कठ' शब्द से प्रथम गोत्रचरणाद् वु (४।३।१२६) से धर्म अर्थ में वुञ्' प्रत्यय का विधान किया गया है। इस सूत्र से चरणविशेषवाची शब्दों से समूह अर्थ में 'धर्मवत्' प्रत्ययों का विधान किया गया है, अत: यहां धर्मवत् 'वुञ्' प्रत्यय होता है।। (२) छान्दोग्यम् । छन्दोग+आम्+व्य। छान्दोग्+य। छान्दोग्य+सु । छान्दोग्यम्। यहां छन्दोग' शब्द से 'छन्दोगौक्थिकयाज्ञिकब चनटायः' (४।३।१२९) से व्य' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-औक्थिक्यम्। (३) आथर्वणम् । आथर्वणिक+आम्+अण् । आथर्वण्+अ। आथर्वण+सु। आथर्वणम्। यहां 'आथर्वणिक' शब्द से 'आथर्वणिकस्येकलोपश्च' (काशिका-४।३।१३३) से अण् प्रत्यय और 'इक' का लोप होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। विशेष-चरण शब्द वैदिक शाखा के आदि-प्रवर्तक का वाचक है। उस शाखा के अध्येताओं को भी उसी नाम से कहा जाता है। ठक् (११) अचित्तहस्तिधेनोष्ठक ।४६। प०वि०-अचित-हस्ति-धेनो: ५।१ ठक् १।१। स०-न विद्यते चित्तं यस्मिँस्तत्-अचित्तम्। अचित्तं च हस्ती च धेनुश्च एतेषां समाहार:-अचित्तहस्तिधेनुः, तस्मात्-अचित्तहस्तिधेनो: (बहुव्रीहिगर्भित: समाहारद्वन्द्वः)। अनु०-तस्य, समूह इति चानुवर्तते । अन्वय:-तस्य अचित्तहस्तिधेनो: समूहष्ठक् । अर्थ:-तस्य इति षष्ठीसमर्थाद् अचित्तवाचिनः प्रातिपदिकाद् हस्तिधेनुभ्यां च प्रातिपदिकाभ्यां समूह इत्यस्मिन्नर्थे ठक् प्रत्ययो भवति। ___ उदा०-(अचितम्) अपूपानां समूह आपूपिकम् । शष्कुलीनां समूह: शाष्कुलिकम्। (हस्ती) हस्तिनां समूहो हास्तिकम्। (धेनुः) धेनूनां समूहो धैनुकम्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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