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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (३) कुन्ति । महाभारत के अनुसार कुन्ति, अवन्ति जनपद का पड़ोसी था। उस राज्य में से अश्व नदी बहती थी जो सम्भवत: चम्बल की शाखा कुमारी नदी थी (वनपर्व ३०८/७ बृहत् संहिता १०।१५) । सहदेव ने अपनी दक्षिण की दिग्विजय में कुन्ति देश को जीता था। यमुना और चंबल के कांठे में प्राचीन कुन्ति राष्ट्र (वर्तमान ग्वालियर) राज्य था जो अब भी कोतवार कहलाता है (पाणिनिकालीन भारतवर्ष)।
(४) अवन्ति। यह मध्य भारत का प्रसिद्ध जनपद था, जिसकी राजधानी उज्जयिनी थी (पाणिनिकालीन भारतवर्ष)।
(५) कोसल । यह राजाधीन जनपद बुद्धकालीन षोडश महाजनपदों में गिना जाता था। पाणिनि ने उससे सम्बन्धित सरयू और इक्ष्वाकु का भी उल्लेख किया है (६ ।४।१७४) (पाणिनिकालीन भारतवर्ष)।
(६) अजाद । इस जनपद का नाम केवल अष्टाध्यायी में मिलता है। नाम से ज्ञात होता है कि यह प्रदेश बकरियों के लिये प्रसिद्ध रहा होगा (अजा+द:)। इटावा का प्रदेश आज तक जमनापारी बकरियों के लिये प्रसिद्ध है। सम्भव है यही 'अजाद' हो (पाणिनिकालीन भारतवर्ष)। ण्य:
(१) कुरुनादिभ्यो ण्यः ।१७०। प०वि०-कुरु-नादिभ्य: ५।३ ण्य: १।१।
स०-न आदिर्येषां ते-नादयः। कुरुश्च नादयश्च ते-कुरुनादयः, तेभ्य:-कुरुनादिभ्यः (बहुव्रीहिगर्भित इतरेतरयोगद्वन्द्वः)।
अनु०-तस्य, अपत्यम्, जनपदशब्दात्, क्षत्रियाद् इति चानुवर्तते। अन्वय:-तस्य, क्षत्रियेभ्यो जनपदशब्देभ्य: कुरु-नादिभ्योऽपत्यं ण्यः ।
अर्थ:-तस्य इति षष्ठीसमर्थेभ्य: क्षत्रियवाचिभ्य: जनपदशब्देभ्य: कुरु-शब्दात् नकारादिभ्यश्च प्रातिपदिकेभ्योऽत्यमित्यस्मिन्नर्थे ण्य: प्रत्ययो भवति।
उदा०-(कुरु:) कुरूणामपत्यम्-कौरव्यः । (नकारादि:) निषधानामपत्यम्-नैषध्यः । निपथानामपत्यम्-नैपथ्यः ।
आर्यभाषा अर्थ-(तस्य) षष्ठीसमर्थ (क्षत्रियात्) क्षत्रियवाची (जनपदशब्दात्) जनपद शब्द (कुरुनादिभ्यः) कुरु शब्द और नकारादि प्रातिपदिकों से (अपत्यम्) अपत्य अर्थ में (ण्य:) ण्य प्रत्यय होता है।
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