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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
पुण्ड्र नामक क्षत्रियों का पुत्र - पौण्ड्र । सुह्मानामपत्याम् - सौह्मः । सुह्म नामक क्षत्रियों का पुत्र - सौह्म । ( मगध ) मगधानामपत्यम् - मागधः । मगध नामक क्षत्रियों का पुत्र मागध । (कलिङ्ग) कलिङ्गानामपत्यम्- कालिङ्ग: । कलिङ्ग नामक क्षत्रियों का पुत्र- कालिङ्ग । (सूरमस) सूरमसानामपत्यम् - सौरमसः । सूरमस नामक क्षत्रियों का पुत्र - सौरमस ।
सिद्धि-आङ्गः । अङ्ग+ङस् +अण्। आङ्ग्ङ्ग्+अ । आङ्गः ।
यहां क्षत्रियवाची जनपद शब्द अङ्ग प्रातिपदिक से अपत्य अर्थ में इस सूत्र से 'अण्' प्रत्यय है। 'तद्धितेष्वचमादेः' (७/२ ।११७) से अंग को आदिवृद्धि और 'यस्येति च' (६/४/१४८) से अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही- 'बाङ्गः' आदि ।
विशेष- (१) अङ्ग: । यह एक जनपद तथा उनके निवासियों का नाम है। यह देश बिहार के भागलपुर नगर के आसपास है। बैद्यनाथ देवघर से लेकर इसकी सीमा मानी गई है। (शब्दार्थ - कौस्तुभ )
(२) बङ्ग, पुण्ड्र, सुह्न ये भारतीय प्राचीन जनपदों के नाम हैं, इनके निवासी क्षत्रिय भी इन्हीं नामों से कहे जाते हैं । सुह्य- एक प्राचीन जनपद, निवासी । एक यवन जाति ।
था।
(३) मगध | गंगा के दक्षिण का प्रदेश मगध जनपद था, जहां राजतन्त्र शासन (पाणिनिकालीन भारतवर्ष)
(४) कलिङ्ग । कलिङ्ग पाणिनि के समय में जनपद राज्य था, किन्तु सोलह महाजनपदों की सूची में उसकी गिनती नहीं है (पाणिनिकालीन भारतवर्ष) । 'प्राचीन भारत का एक जनपद । वहां का निवासी। वाममार्ग में इसकी सीमा का उल्लेख इस प्रकार पाया जाता है
रोढ़ देश । वहां का (शब्दार्थ - कौस्तुभ )
ञ्यङ्
(५) सूरमस । यह नाम केवल अष्टाध्यायी में आया है। ज्ञात होता है कि असम प्रान्त में प्रसिद्ध सूरमा नदी की दून और पर्वत - उपत्यका का प्राचीन नाम सूरमस था ।
(पाणिनिकालीन भारतवर्ष) ।
जगन्नाथात्समारभ्य कृष्णतीरान्तगः प्रिये ।
कलिङ्गदेश: सम्प्रोक्तो वाममार्गपरायणः ।।' (शब्दार्थ- कौस्तुभ )
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(१) वृद्धेत्कोसलाजादाञ्यङ् ॥१६६ । प०वि०-वृद्ध-इत्-कोसल - अजादात् ५ ।१ ञ्यङ् १।१ । स०-वृद्धं च इच्च कोसलश्च अजादश्च एतेषां समाहारःवृद्धेत्कोसलाजादम्, तस्मात् वृद्धेत्कोसलाजादात् (समाहारद्वन्द्व : ) ।
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