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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(ण:) गार्ग्या अपत्यम् - गार्गे जाल्मः । ( ठक्) गार्ग्या अपत्यम्गार्गिको जाल्मः । (णः ) ग्लुचुकायन्या अपत्यम् - ग्लौचुकायनः । (ठक्) ग्लुचुकायन्या अपत्यम् - ग्लौचुकायनिकः । १३२ आर्यभाषाः अर्थ- (तस्य) षष्ठीसमर्थ (गोत्रस्त्रियाः ) गोत्रवाची स्त्रीप्रत्ययान्त प्रातिपदिक से (अपत्यम्) अपत्य अर्थ में (णः) ण प्रत्यय (च) और (ठक् ) ठक् प्रत्यय होते हैं । उदा० - (ण) गार्ग्या अपत्यम् - गार्गो जाल्मः । ( ठक् ) गार्ग्या अपत्यम् - गार्गिको जाल्मः । गार्गी का नीच पुत्र- गार्ग, गार्गिक । (ण) ग्लुचुकायन्या अपत्यम् - ग्लौचुकायनः । (ठक्) ग्लुचुकायन्या अपत्यम्- ग्लौचुकायनिक: । ग्लुचुकायनी का नीच पुत्र- ग्लौचुकायन, ग्लौचुकायनिक सिद्धि- (१) गार्ग: । गर्ग+ङस् +यञ् । गार्ग्य + ङीष् । गार्य्+ई। गार्गी। गार्गी+डस्+ण । गाग्र् +अ । गार्ग+सु । गार्गः । यहां प्रथम षष्ठी- समर्थ 'गर्ग' शब्द से गोत्रापत्य अर्थ में 'गर्गादिभ्यो यञ्' (४ 1१1१०५) से यञ्' प्रत्यय और 'यञश्च' (४ 1१1१६ ) से स्त्रीलिङ्ग में 'ङीप् ' प्रत्यय है। गोत्रवाची स्त्रीप्रत्ययान्त 'गार्गी' शब्द से अपत्य ( निन्दित ) अर्थ में इस सूत्र से 'ण' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है । (२) गार्गिकः । गार्गी + ङस् + ठक् । गार्ग्+इक। गार्गिकः । यहां षष्ठीसमर्थ गोत्रवाची स्त्रीप्रत्ययान्त गार्गी शब्द से अपत्य ( निन्दित) अर्थ में 'ठक्' प्रत्यय है। 'ठस्येकः' (७ 1३1५०) से 'ठू' के स्थान में 'इक्' आदेश होता है। (३) ग्लौचुकायन: । ग्लुचुक + ङस् + फिन् । ग्लुचुक + आयनि। ग्लुचुकायनि । ग्लुचुकायनि + ङीष् । ग्लुचुकायनी। ग्लुचुकायनी+ङस् +ण। ग्लौचुकायन्+अ । ग्लौचुकायन+सु । ग्लौचुकायनः । यहां प्रथम षष्ठी - समर्थ 'ग्लुचुकायन' शब्द से गोत्रापत्य अर्थ में 'प्राचामवृद्धात् फिन् बहुलम्' (४ ।१ ।१६०) से फिन्' प्रत्यय तत्पश्चात् स्त्रीलिङ्ग में 'इतो मनुष्यजाते:' (४/१/६५ ) से ङीष्' प्रत्यय है। षष्ठीसमर्थ गोत्रवाची स्त्रीप्रत्ययान्त 'ग्लुचुकायनी' शब्द से अपत्य (निन्दित) अर्थ में इस सूत्र से 'ण' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है । (४) ग्लौचुकायनिक: । ग्लुचुकायनी+ठक् । ग्लौचुकायन्+इक। ग्लौचुकायनिक+सु । ग्लोचुकायनिकः । पूर्ववत् । विशेष- यहां स्त्री- पुत्र होने से निन्दित नहीं अपितु निन्दित आचरण से पुत्र निन्दित समझना चाहिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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