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________________ ८७ चतुर्थाध्यायस्य प्रथमः पादः अर्थ:-समर्थानां सूत्रे प्रथमोच्चारितात्. तस्य इति षष्ठी-समर्थात् प्रातिपदिकात् 'अपत्यम्' इत्यस्मिन्नर्थे विकल्पेन यथाविहितं प्रत्ययो भवति। उदा०-उपगोरपत्यम्-औपगवः। अश्वपतेरपत्यम्-आश्वपत: । दितेरपत्यम्-दैत्यः। उत्सस्यापत्यम्-औत्स:। स्त्रिया अपत्यम्-स्त्रैणः । पुंसोऽपत्यम्-पौस्न:। आर्यभाषा: अर्थ-(समर्थानाम्) समर्थ पदों में (प्रथमात्) सूत्रपाठ में प्रथम उच्चारित (तस्य) षष्ठी-समर्थ (प्रातिपदिकात्) प्रातिपदिक से (अपत्यम्) अपत्य अर्थ में (वा) विकल्प से यथाविहित प्रत्यय होता है। __ उदा०-उपगोरपत्यम्-औपगवः। उपगु का पुत्र-औपगव। अश्वपतेरपत्यम्आश्वपत: । अश्वपति का पुत्र-आश्वपत। दितेरपत्यम्-दैत्य: । दिति का पुत्र-दैत्य। उत्सस्यापत्यम्-औत्सः । उत्स का पुत्र-औत्स। स्त्रिया अपत्यम्-स्त्रैणः । स्त्री का पुत्र-स्त्रैण। स्त्री के नाम से प्रसिद्ध। पुंसोऽपत्यम्-पौस्न: । पुमान् का पुत्र-पौंस्न। पुरुष के नाम से प्रसिद्ध। सिद्धि-(१) औपगवः । उपगु+ङस्+अण। औपगो+अ। औपगव+सु। औपगवः । यहां षष्ठी-समर्थ 'उपगु' शब्द से इस सूत्र से अपत्य अर्थ में 'प्राग दीव्यतोऽण' (४।१।८३) से यथाविहित 'अण्' प्रत्यय है। तद्धितेष्वचामादेः' (७।२।११७) से अंग को आदिवृद्धि और 'ओर्गुणः' (६।४।१४६) से अंग को गुण होता है। (२) आश्वपतम् । अश्वपति+डस्+अण्। आश्वपतम्। यहां षष्ठी-समर्थ 'अश्वपति' शब्द से इस सूत्र से अपत्य अर्थ में 'अश्वपत्यादिभ्यश्च' (४।१९८४) से यथाविहित अण् प्रत्यय है। (३) दैत्यः । दिति+डस्+ण्य । दैत्यः। । यहां षष्ठी-समर्थ दिति' शब्द से इस सूत्र से अपत्य अर्थ में दित्यदित्या०' (४।१।८५) से यथाविहित ‘ण्य' प्रत्यय है। (४) औत्स: । उत्स+डस्+अञ्। औत्सः। यहां षष्ठी-समर्थ उत्स' शब्द से इस सूत्र से अपत्य अर्थ में उत्सादिभ्योऽज्ञ (४।१।८६) से यथाविहित 'अञ्' प्रत्यय है। (५) स्त्रैण: । स्त्री+डस्+नञ् । स्त्रैणः । यहां षष्ठी-समर्थ स्त्री शब्द से अपत्य अर्थ में स्त्रीपुंसाभ्यां०' (४।१।८७) से यथाविहित नञ्' प्रत्यय है। (६) पौस्न: । पुंस्+स्नम् । पौंस्न: । पूर्ववत् स्नञ्' प्रत्यय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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