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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् यहां 'अत्रि' शब्द से गोत्रापत्य अर्थ में 'इतश्चानिञः' (४।१।१२२) से ढक्' प्रत्यय है। इस सूत्र से उसका लुक् नहीं होता है। अत्रिभृगु०' (२।४।६५) से लुक् प्राप्त था, उसका प्रतिषेध किया गया है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(३) खारपायणीयाः । खरप+फक् । खारप्+आयन । खारपायण । खारपायण+छ। खारपायण+ईय । खारपायणीय+जस् । खारपायणीयाः ।
यहां खरप्' शब्द से गोत्रापत्य अर्थ में नडादिभ्यः फक्' (४।१।९९) से 'फक्' प्रत्यय है। इस सूत्र से उसका लुक नहीं होता है। यस्कादिभ्यो गोत्रे' (२।४।६३) से लुक् प्राप्त था, उसका प्रतिषेध किया गया है। शेष कार्य पूर्ववत् है। प्रत्ययस्य लुक्
(८) यूनि लुक् ।६०। प०वि०-यूनि ७१ लुक् १।१। अनु०-प्राग, दीव्यत:, अचि इति चानुवर्तते । अन्वय:-प्रातिपदिकाद् यूनि लुक् प्राग् दीव्यतोऽचि ।
अर्थ:-प्रातिपदिकाद् युवापत्येऽर्थे विहितस्य प्रत्ययस्य लुग भवति प्राग्दीव्यतीयेऽजादौ प्रत्यये परत:।
उदा०-फाण्टाहृतस्यापत्यम्-फाण्टाहृति:, फाण्टाहृतेर्युवापत्यम्फाण्टाहृतः, फाण्टाहृतस्येमे छात्रा इति-फाण्टाहृता: । भागवित्तस्यापत्यम्भागवित्ति:, भागवित्तेर्युवापत्यम्-भागवित्तिक:, भागवित्तिकस्येमे छात्रा इति-भागवित्ता:। .
आर्यभाषा: अर्थ-(प्रातिपदिकात्) प्रातिपदिक से (यूनि) युवापत्य अर्थ में विहित प्रत्यय का (लुक्) लुक् होता है। (प्राग्दीव्यतः) यदि प्राग्दीव्यतीय (अचि) अजादि प्रत्यय परे हो।
उदा०-फाण्टाहृतस्यापत्यम्-फाण्टाहृति:, फाण्टाहृतेर्युवापत्यम्-फाण्टाहृतः, फाण्टाहृतस्येमे छात्रा इति-फाण्टाहृताः। फाण्टाहृत का पुत्र 'फाण्टाहृति' कहाता है। फाण्टाहति का युवापत्य फाण्टाहृतः' कहाता है और फाण्टाहृतः' के छात्र फाण्टाहताः' कहाते हैं। भागवित्तस्यापत्यम्-भागवित्तिः, भागवित्तेर्युवापत्यम्-भागवित्तिकः, भागवित्तिकस्येमे छात्रा इति-भागवित्ता:। भागवित्त का पुत्र ‘भागवित्तिः' कहाता है। भागवित्ति का युवापत्य 'भागवित्तिक' कहाता है। 'भागवित्तिक' के छात्र 'भागवित्ताः' कहाते हैं।
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