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________________ तृतीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः ५३५ (३) आह । यहां तिप्' के स्थान में ‘णल्’ आदेश और ब्रूज्' के स्थान में 'आह' आदेश होता है। ऐसे ही-आहतुः, आहुः, आहथुः । (४) आत्थ । यहां 'सिप' के स्थान में 'थल्’ आदेश और ब्रूञ् के स्थान में 'आह्' आदेश है। 'आहस्थः' (८।२।३५) से 'आह' के 'ह' को 'थ्' आदेश और 'खरि च (८।४।५४) से 'थ्' को चर् त्' होता है। लोट्-आदेशप्रकरणम् लङ्वद्-आदेशाः (१) लोटो लङ्वत्।८५। प०वि०-लोट: ६ १ लङ्वत् अव्ययपदम् । लङ इव लङ्वत् । तत्र तस्येव (५।१।११५) इति षष्ठ्यर्थे वति: प्रत्ययः । अनु०-लस्य इत्यनुवर्तते। अर्थ:-धातो: परस्य लोट्सम्बन्धिनो लस्य स्थाने लवदादेशा भवन्ति। उदाहरणम् लादेशा: लडनदेशा: पच्+लोट् भाषार्थ: (१) तिप् - - - (२) तस् तौ पचताम्। वे दोनों पकावें। (३) झि - - - - - - (४) सिप् - - - - - - (५) थस् तम् युवां पचतम्। तुम दोनों पकाओ। (६) थ: . त: यूयं पचत। तुम सब पकाओ। (७) मिप् अम् - - - (८) वस् वः आवां पचाव। हम दोनों पकावें। (९) मस् मः वयं पचाम। हम सब पकावें । आर्यभाषा-अर्थ-(धातो:) धातु से परे (लोट:) लोट् सम्बन्धी (लस्य) 'ल' के स्थान में (लवत्) 'लङ्' के समान आदेश होते हैं। .. उदा०-उदाहरण और उनका अर्थ संस्कृत भाग में देख लेवें। सिद्धि-(१) पचताम् । पच्+लोट् । पच्+तस्। पच्+शप्+ताम्। पच्+अ+ताम् । पचताम्। - - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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