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________________ ५२४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (४) चर्म। चर्+मनिन्। चर्+मन्। चर्मन्+सु। चर्म। यहां 'चर गतौं' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् मनिन्' प्रत्यय है। क्तः (अधिकरणे कर्तरि कर्मणि भावे च)(६) क्तोऽधिकरणे च ध्रौव्यगतिप्रत्यवसानार्थेभ्यः ।७६ । प०वि०-क्त: १।२ अधिकरणे ७१ च अव्ययपदम्, ध्रौव्य-गतिप्रत्यवसानार्थेभ्य: ५।३। स०-ध्रौव्यं च गतिश्च प्रत्यवसानं च तानि-ध्रौव्यगतिप्रत्यवसानानि, एतानि अर्था येषां ते ध्रौव्यगतिप्रत्यवसानार्थाः, तेभ्य:-ध्रौव्यगतिप्रत्यवसानार्थेभ्य: (इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भितबहुव्रीहिः)। अर्थ:-ध्रौव्यार्थेभ्य: अकर्मकेभ्यो गत्यर्थेभ्य: प्रत्यवसानार्थेभ्य:= अभ्यवहारार्थेभ्यो धातुभ्य: पर: क्त: प्रत्ययोऽधिकरणेऽर्थे चकाराद्भावे कर्मणि कर्तरि चार्थे भवति । उदाहरणम्धातुः अधिकरणे कर्तरि - कर्मणि भावे ध्रौव्यार्थः इदमेषामासितम् आसितो - - देवदत्त: देवदत्तेन गत्यर्थः इदमेषां यातम् यातो यातो. देवदत्तो ग्रामम् देवदत्तेन ग्राम: प्रत्यवसा- इदमेषां - - भुक्त ओदनो भुक्तं नार्थ: भुक्तम् देवदत्तेन ध्रौव्यार्था: अकर्मका:, प्रत्यवसानार्था अभ्यवहारार्था धातवो भवन्तीति वैयाकरणसम्प्रदायप्रसिद्धिः । आर्यभाषा-अर्थ-(ध्रौव्यगतिप्रत्यवसानार्थेभ्य:) अकर्मक, गत्यर्थक और अभ्यवहारार्थक (खाना-पीना) (धातो:) धातुओं से परे (क्तः) क्त प्रत्यय (अधिकरणे) अधिकरण कारक में (च) और यथाप्राप्त कर्ता, कर्म और भाव अर्थ में होता है। उदा०-संस्कृत भाग में देख लेवें। अर्थ इस प्रकार है-(धौव्यार्थक) यह इनके बैठने का स्थान है। देवदत्त बैठ गया। देवदत्त के द्वारा बैठा गया। (गत्यर्थक) यह इनके जाने का स्थान है। देवदत्त गांव चला गया। देवदत्त के द्वारा गांव जाया गया। (प्रत्यवसानार्थक) यह इनके भोजन का स्थान है। देवदत्त के द्वारा चावल खाया गया। देवदत्त के द्वारा खाया गया। आसितं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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