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________________ तृतीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः ५२१ से (१०) अनुजात: । यहां 'अनु' उपसर्गपूर्वक 'जनी प्रादुर्भावें (दि०आ०) धातु पूर्ववत् 'क्त' प्रत्यय और 'जनसनखनां सञ्झलो:' ( ६ । ४ । ४२ ) से आत्व होता है। (११) आरूढः | यहां 'आङ्' उपसर्गपूर्वक रुह बीजजन्मनि प्रादुर्भावे च' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से पूर्ववत् 'क्त' प्रत्यय, 'हो ढ:' (८ 1२ / ३१ ) से 'ह' को 'द्' आदेश, 'झषस्तथोर्धोऽधः' (८।२ ।४०) से 'तू' को 'ध्' आदेश, 'ष्टुना ष्टुः' (८/४ /४०) से 'ध्' को ष्टुत्व द्. 'ढो ढे लोप:' (८ | ३ | १३) से पूर्ववर्ती द्' का लोप 'लोपे पूर्वस्य दीर्घोऽण:' ( ६ 1३ 1१०९) से दीर्घत्व होता है। (१२) अनुजीर्ण: । यहां 'अनु' उपसर्गपूर्वक 'डृ वयोहानौ' (क्रया०प०) धातु से इस सूत्र से पूर्ववत् 'क्त' प्रत्यय, 'ऋत इद् धातो:' ( ७ 1१1१००) से इत्त्व, 'हलि च' (८/२/७७) से दीर्घत्व, 'रदाभ्यां निष्ठातो नः पूर्वस्य च द:' ( ८ / २ / ४२ ) से 'क्त' के 'त्' को 'न्' आदेश और 'रषाभ्यां नो णः समानपदे' ( ८1१1१) से णत्व होता है । निपातनम् (सम्प्रदाने) - (६) दाशगोघ्नौ सम्प्रदाने ।७३ | प०वि० - दाश - गोघ्नौ १ । २ सम्प्रदाने ७ ।१ । स०-दाश्च गोघ्नश्च तौ दाशगोघ्नौ (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । अर्थः- दाशगोघ्नौ शब्दौ सम्प्रदानेऽर्थे निपात्येते । उदा०- ( दाश:) दाशन्ति यस्मै स दाश: । (गोघ्नः ) गौर्हन्यते = प्राप्यते यस्मै स गोघ्नः । आर्यभाषा-अर्थ- (दाशगोघ्नौ) दाश, गोघ्न शब्द (सम्प्रदाने) सम्प्रदान कारक अर्थ में निपातित हैं। उदा०- ( दाश) दाशन्ति यस्मै स दाश: । जिसके लिये दाने देते हैं वह 'दाश' अर्थात् विद्वान् और ब्रह्मचारी आदि । (गोघ्न) गौर्हन्यते = प्राप्यते यस्मै स गोघ्नः । जिसके लिये गौ प्राप्त की जाती है वह विद्वान् अतिथि आदि । सिद्धि - (१) दाश: । यहां 'दाशू दाने' (भ्वा०प०) धातु से 'नन्दिग्रहिपचादिभ्यो ल्युणिन्यचः' (३।१।१३४) से 'अच्' प्रत्यय कर्ता कारक अर्थ में प्राप्त है किन्तु इस सूत्र से निपातन से सम्प्रदान कारक अर्थ में 'अच्' प्रत्यय होता है । (२) गोघ्न: । यहां 'गौ' शब्द उपपद होने पर 'हन् हिंसागत्यो:' (अदा०प०) धातु से इस सूत्र से पूर्ववत् 'अच्' प्रत्यय अथवा 'टक्' प्रत्यय निपातित है। 'गमहनजन०' (६।४।९८) से हन्' धातु का उपधालोप और हो हन्तेणिन्नेषु' (७/३/५४) से कुत्व 'घ्' होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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