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धातु: गत्यर्थकः
श्लिष:
शीङ्
स्था:
अकर्मकः (क) ग्लानो भवान्
(ख) आसितो भवान्
आस:
वस:
जन:
रुहः जीर्यतिः
तृतीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः कर्मणि
गतो देवदत्तेन ग्रामः
कर्तरि गतो देवदत्तो ग्रामम्
क्रियते ।
उपश्लिष्टो गुरुं भवान् उपश्लिष्टो गुरुर्भवता
उपशयितो गुरुर्भवता
उपशयितो गुरुं भवान् उपस्थितो गुरुं भवान्
उपस्थितो गुरुर्भवता
उपासितो गुरुं भवान् अनूषितो गुरुं भवान् अनुजातो माणवको
माणविकाम्
आरूढो वृक्षं भवान् अनुजीर्णो वृषलीं देवदत्तः
उपासितो गुरुर्भवता
अनूषितो गुरुर्भवता अनुजाता माणवकेन
माणविका
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भावे
गतं देवदत्तेन
ग्लानं भवता
आसितं भवता
उपश्लिष्टं भवता
उपशयितं भवता
उपस्थितं भवता
आरूढो वृक्षो भवता अनुजीर्णा वृषली
देवदत्तेन
श्लिषादयो धातव: सोपसर्गाः सकर्मका भवन्तीत्यतस्तेषामत्र ग्रहणं
उपासितं भवता
अनूषितं भवता
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अनुजातं
माणवकेन
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आरूढं भवता
अनुजीर्णं देवदत्तेन
आर्यभाषा- अर्थ - (गत्यर्थ० जीर्यतिभ्यः) गत्यर्थक, अकर्मक और श्लिष, शीङ्, स्था, आस, वस, जन, रुह, जीर्यति (धातोः) धातुओं से परे (क्तः) क्त प्रत्यय ( कतीरे) कर्तृवाच्य (कर्मणि) कर्मवाच्य (भावे) भाववाच्य अर्थ में होता है।
उदा०-संस्कृत भाग में देख लेवें। अर्थ इस प्रकार है- (गत्यर्थक) देवदत्त गांव गया । देवदत्त के द्वारा गांव जाया गया । देवदत्त के द्वारा जाया गया। (अकर्मक) आपने ग्लानि की। आपके द्वारा ग्लानि की गई। आप बैठे। आपके द्वारा बैठा गया। ( श्लिष) उपश्लिष्टो गुरुं भवान् । आपने गुरु का सङ्ग किया। आपके द्वारा गुरु का संग किया गया। आपके द्वारा संग किया गया। (शीङ्) आपने गुरु के पास शयन किया। आपके द्वारा गुरु के पास शयन किया गया। आपके द्वारा शयन किया गया। (स्था) आपने गुरु का उपस्थान किया। आपके द्वारा गुरु का उपस्थान किया गया। आपके द्वारा उपस्थान किया गया। (आस) आपने गुरु की उपासना की। आपके द्वारा गुरु की उपासना की गई। आपके द्वारा उपासना की गई। ( वस) आपने गुरु का अनुवास किया। आपके द्वारा गुरु का अनुवास किया गया। आपके द्वारा अनुवास किया गया। (जन) बालिका के पश्चात् बालक उत्पन्न हुआ। बालक के द्वारा बालिका के पश्चात् उत्पन्न हुआ गया। बालक के द्वारा
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