SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 524
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५११ तृतीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः स०-पर्याप्तिरुच्यते यैस्ते-पर्याप्तिवचनाः, तेषु-पर्याप्तिवचनेषु (उपपदसमास:)। पर्याप्ति:=अन्यूनता, परिपूर्णतत्यर्थः । अलम् अर्थो येषां तेऽलमाः , तेषु-अलमर्थेषु (बहुव्रीहिः)। अनु०-तुमुन् इत्यनुवर्तते। अन्वय:-अलमर्थेषु पर्याप्तिवचनेषु धातोस्तुमुन्। अर्थ:-अलमर्थेषु पर्याप्तिवचनेषु शब्देषु उपपदेषु धातो: परस्तुमुन् प्रत्ययो भवति। उदा०-पर्याप्तो भोक्तुं देवदत्तः । अलं भोक्तुं यज्ञदत्तः । आर्यभाषा-अर्थ-(अलमर्थेषु) अलम् अर्थवाले (पर्याप्तिवचनेषु) परिपूर्णतावाची शब्द उपपद होने पर (धातो:) धातु से परे (तुमुन्) तुमुन् प्रत्यय होता है। उदा०-पर्याप्तो भोक्तुं देवदत्त: । देवदत्त खाने में समर्थ है। अलं भोक्तुं यज्ञदत्तः । यज्ञदत्त खाने में समर्थ है। 'अलम्' शब्द का अर्थ परिपूर्णता है। परिपूर्णता दो प्रकार से हो सकती है, भोजन की अन्यूनता तथा भोक्ता के सामर्थ्य से। यहां भोक्ता के सामर्थ्य का ग्रहण किया जाता है। सिद्धि-(१) भोक्तम्। यहां 'भुज्' धातु से इस सूत्र से तुमुन्' प्रत्यय है। पुगन्तलघूपधस्य च' (७।३।८६) से 'भुज्' धातु को लघूपध गुण होता है। चो: कु:' (८।२।३०) से 'भुज्' के ज्' को 'ग्' और 'खरि च' (८।४।५४) से 'ग्' को चर् क्' होता है। प्रत्ययार्थप्रकरणम् कृत् (कर्तरि) (१) कर्तरि कृत्।६७। प०वि०-कर्तरि ७ ११ कृत् १।१ । अर्थ:-अत्र धातोर्विहिता: कृत्-संज्ञका: प्रत्यया: कर्तरि कारके भवन्ति । यत्रार्थनिर्देशो नास्ति तत्रायं विधिरुपतिष्ठते, अर्थाकाङ्क्षत्वात् । उदा०-कारकः । कर्ता । नन्दन: । ग्राही। पच:, इत्यादिकम्। आर्यभाषा-अर्थ-(धातोः) यहां धातु से विधान किये गये (कृत्) कृत्-संज्ञक प्रत्यय (करि) कर्ता कारक में होते हैं। जहां किसी अर्थविशेष का निर्देश नहीं किया गया है, वहां यह विधान उपस्थित होता है, क्योंकि वहां अर्थ की आकाङ्क्षा होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy