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________________ ४५२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा-अर्थ-(धातुसम्बन्धे) धात्वर्थों का परस्पर सम्बन्ध होने पर (क्रियासमभिहारे) क्रिया के बार-बार होने अथवा अधिक होने में (धातो:) धातु से परे (लोट) लोट् प्रत्यय होता है और (लोट:) उस लोट् प्रत्यय के स्थान में (हि-स्वौ) हि और स्व आदेश होते हैं (च) और (तध्वमो:) त और ध्वम् प्रत्यय के स्थान में हि और स्व आदेश (वा) विकल्प से होते हैं। उदा०-संस्कृत भाग में सब उदाहरण और उनके अर्थ लिख दिये हैं, वहां देख लेवें। सिद्धि-(१) लनीहि-लनीहि। यहां ला छेदने (रुधा०3०) धातु से इस सूत्र से धातु अर्थ सम्बन्ध में तथा क्रियासमभिहार अर्थ में 'लोट्' प्रत्यय है और उसके स्थान में हि' आदेश होता है। 'त' प्रत्यय के स्थान में विकल्प से हि' आदेश होता है-लुनीत । यह हि' आदेश तीनों कालों में होता है, जैसा कि ऊपर उदाहरणों में स्पष्ट किया गया है। (२) अधीष्व । यहां 'अधि' उपसर्गपूर्वक 'इङ् अध्ययने (अदा०आ०) धातु से इस सूत्र से पूर्ववत् 'लोट्' प्रत्यय है और उसके स्थान में 'स्व' आदेश है। 'ध्वम्' प्रत्यय के स्थान में विकल्प से स्व' आदेश होता है-लुनीध्वम् । यह स्व' आदेश तीनों कालों में होता है, जैसा कि ऊपर उदाहरणों में स्पष्ट किया गया है।। लोट् (समुच्चये) (३) समुच्चयेऽन्यतरस्याम् ।३। प०वि०-समुच्चये ७।१ अन्यतरस्याम् अव्ययपदम्। अनु०-धातुसम्बन्धे लोट् लोटो हिस्वौ वा च तध्वमोरिति चानुवर्तते। अन्वय:-धातुसम्बन्धे समुच्चये धातोरन्यतरस्यां लोट, लोटो हिस्वौ, तध्वमोश्च वा। ___ अर्थ:-धात्वर्थानां सम्बन्धे सति समुच्चयेऽर्थे वर्तमानाद् धातो: परो विकल्पेन लोट् प्रत्ययो भवति, लोट: स्थाने च हिस्वावादेशौ भवत:, तध्वमोश्च स्थाने विकल्पेन भवत:। उदा०-(हि:) भ्राष्ट्रमट, मठमट, खदूरमट, स्थाल्यपिधानमट इत्येवायम्-अटति, इतीमावटत:, इतीमेष्टन्ति, इति त्वमटसि, इति युवामटथ:, इति यूयमटथ (अथवा भ्राष्ट्रमटत, मठमटत, खदूरमटत, स्थाल्यपिधानमटत इत्येवं यूयमटथ) इत्यमहटामि, इत्यावामटाव:, इति वयमटामः । अथवा-भ्राष्ट्रमटति, मठमटति, खदूरमटति, स्थाल्यपिधानमटति, इत्ययमटति इत्यादिकम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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