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तृतीयाध्यायस्य तृतीयः पादः (३) क्रिया। यहां पूर्वोक्त कृ' धातु से कृत्र: श च' (३।३।१००) से श' प्रत्यय है। शेष कार्य वहीं देखें।
(४) कृत्या। यहां पूर्वोक्त कृ' धातु से कृञः श च (३।३।१००) से क्यप्' प्रत्यय है। शेष कार्य वहीं देखें।
(५) कृति: । यहां पूर्वोक्त कृ' धातु से 'स्त्रियां क्तिन्' (३।३।९४) से 'क्तिन्' प्रत्यय है। ण्वुच्
(१८) पर्यायाहर्णोत्पत्तिषु ण्वुच् ।१११। प०वि०-पर्याय-अर्ह-ऋण-उत्पत्तिषु ७।३ ण्वुच् १।१ ।
स०-पर्यायश्च अर्हश्च ऋणं च उत्पत्तिश्च ता:-पर्यायार्होत्पत्तय:, तासु-पर्यायाहोत्पत्तिषु (इतरेतरयोगद्वन्द्व:) ।
अनु०-स्त्रियां विभाषा इति चानुवर्तते।
अर्थ:-अकर्तरि कारके भावे चार्थे वर्तमानाद् धातो: पर: स्त्रियां विकल्पेन ण्वुच् प्रत्ययो भवति, पर्याय-अर्ह-ऋण-उत्पत्तिष्वर्थेषु द्योत्येषु । पर्याय: परिपाटीक्रम: । अर्हः तद्योग्यता। ऋणम् यत् परस्य धारयते तत् । उत्पत्ति: जन्म।
उदा०- (पर्याय:) भवत: शायिका। भवतोऽग्रग्रासिका। (अर्ह:) अर्हति भवान् इक्षुभक्षिकाम्। (ऋणम्) इक्षुभक्षिकां मे धारयसि । ओदनभोजिकां मे धारयसि । पय:पायिकां में धारयसि । (उत्पत्ति:) इक्षुभक्षिका मे उदपादि भवता। ओदनभोजिका मे उदपादि भवता । पय:पायिका मे उदपादि भवता।
आर्यभाषा-अर्थ-(अकीरे) कर्ता से भिन्न (कारके) कारक में (च) और (भावे) भाव अर्थ में विद्यमान (धातो:) धातु से परे (स्त्रियाम्) स्त्रीलिङ्ग में (विभाषा) विकल्प से (ण्वुच्) ण्वुच् प्रत्यय होता है (पर्यायाहर्णोत्पत्तिषु) यदि वहां पर्याय, अर्ह, ऋण और उत्पत्ति अर्थ प्रकाशित हो।
उदा०-(पर्याय) भवत: शायिका। आपकी सोने की पर्याय (बारी) है। भवतोऽग्रग्रासिका। आपकी पहले भोजन करने की बारी है। (अर्ह) अर्हति भवान् इक्षुभक्षिकाम् । आप गन्ना चूस सकते हो। (ऋण) इक्षुभक्षिकां मे धारयसि । तू मेरी इक्षुभक्षिका (गन्ना चुसाई) का ऋणी है। ओदनभोजिकां मे धारयसि । तू मेरी एक ओदनभोजिका (भात खिलाई) का ऋणी है। पय:पायिकां मे धारयसि । तु मेरी एक
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