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________________ ३७८ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (२) पूजा। पूज पूजायाम्' (चुरादि०)। (३) कथा। कथ वाक्यप्रबन्धे (चुरादि०)। (४) कुम्बा। कुबि आच्छादने (चुरादि०)। (५) चर्चा । चर्च अध्ययने (चुरादि०)। अङ् (१३) आतश्चोपसर्गे ।१०६। प०वि०-आत: ५।१ च अव्ययपदम्, उपसर्गे ७।१। अनु०-स्त्रियाम्, अङ् इति चानुवर्तते। अन्वय:-अकर्तरि कारके भावे च उपसर्गे आतो धातो: स्त्रियाम् अङ्। अर्थ:-अकर्तरि कारके भावे चार्थे वर्तमानेभ्य: सोपसर्गेभ्य आकारान्तेभ्योऽपि धातुभ्य: पर: स्त्रियाम् अङ् प्रत्ययो भवति । क्तिनोऽपवाद: । उदा०-प्रदा। उपदा। प्रधा। उपधा। आर्यभाषा-अर्थ- (अकीरे) कर्ता से भिन्न (कारके) कारक में (च) और (भावे) भाव अर्थ में विद्यमान (उपसर्गे) उपसर्गपूर्वक (आत:) आकारान्त (धातो:) धातुओं से (च) भी परे (अङ्) अङ् प्रत्यय होता है। उदा०-प्रदा। प्रदान करना (भेंट)। उपदा । उपदान करना (रिश्वत)। प्रधा। प्रधारण करना (पहनना)। उपधा। उपधारण करना (ओढना)। सिद्धि-(१) प्रदा। यहां प्र' उपसर्गपूर्वक डुदान दाने (जु०उ०) इस आकारान्त धातु से इस सूत्र से स्त्रीलिङ्ग में 'अङ्' प्रत्यय है। यह क्तिन्' प्रत्यय का अपवाद है। 'आतो लोप इटि च' (६।४।६४) से अङ्ग' के आकार का लोप और तत्पश्चात् 'अजाद्यतष्टाप (४।१।४) से स्त्रीलिङ्ग में टाप्' प्रत्यय होता है। (२) उपदा । 'उप' उपसर्गपूर्वक पूर्ववत् 'दा' धातु। (३) प्रधा। प्र' उपसर्गपूर्वक 'डुधाञ् धारणपोषणयोः' (जु०उ०)। (४) उपधा। 'उप' उपसर्गपूर्वक पूर्ववत् 'धा' धातु। युच् (१४) ण्यासश्रन्थो युच् ।१०७। प०वि०-णि-आस-श्रन्थ: ५।१ युच् १।१। स०-णिश्च आसश्च श्रन्थ् च एतेषां समाहार:-ण्यासश्रन्थ्, तस्मात्-ण्यासश्रन्थः (समाहारद्वन्द्वः)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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