________________
३७४
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा-अर्थ-(अकतरि) कर्ता से भिन्न (कारके) कारक में (च) और (भावे) भाव अर्थ में विद्यमान (इच्छा) इच्छा शब्द (स्त्रियाम्) स्त्रीलिङ्ग में (श:) श-प्रत्ययान्त निपातित है।
उदा०-इच्छा। चाहना।
सिद्धि-इच्छा। इष्+श। इष्+अ। इछ्+अ। इतुक् छ्+अ। इच्छ+अ। इच्छ+टाप् । इच्छ+आ। इच्छा+सु। इच्छा।
यहां 'इषु इच्छायाम्' (भ्वा०प०) धातु से भाव अर्थ में इस सूत्र से 'श' प्रत्यय है। 'श' प्रत्यय के शित्' होने से 'इषुगमियमां छ:' (७।३ १७७) से 'इष्' के 'ए' को 'छ' आदेश होता है। छे च' (६।१।७१) से 'इ' को तुक्' आगम तथा 'स्तो: श्चुना श्चुः' (८।४।३९) से त्' को 'च' आदेश होता है। 'श' प्रत्यय के सार्वधातुक होने से भाववाच्य में सार्वधातुके यक्' (३।१।६७) से प्राप्त यक्’ विकरण-प्रत्यय निपातन से नहीं होता है। अजाद्यतष्टाप्' (४।१।४) से स्त्रीलिङ्ग में टाप्' प्रत्यय होता है।
अ:
(६) अ प्रत्ययात् ।१०२। प०वि०-अ १।१ (लुप्तप्रथमानिर्देश:) प्रत्ययात् ५।१ । अनु०-स्त्रियामित्यनुवर्तते। अन्वय:-अकर्तरि कारके भावे च प्रत्ययान्ताद्धातो: स्त्रियाम् अः।
अर्थ:-अकर्तरि कारके भावे चार्थे वर्तमानेभ्य: प्रत्ययान्तेभ्यो धातुभ्यः पर: स्त्रियाम् अ-प्रत्ययो भवति। क्तिनोऽपवादः।
उदा०-चिकीर्षा । जिहीर्षा । पुत्रीया। पुत्रकाम्या। लोलूया। कण्डूया।
आर्यभाषा-अर्थ-(अकीरे) कर्ता से भिन्न (कारके) कारक में (च) और (भावे) भाव अर्थ में विद्यमान (प्रत्ययात्) प्रत्ययान्त (धातो:) धातुओं से परे (स्त्रियाम्) स्त्रीलिङ्ग में (अ:) 'अ' प्रत्यय होता है। यह क्तिन् प्रत्यय का अपवाद है।
उदा०-चिकीर्षा । करने की इच्छा। जिहीर्षा । हरने की इच्छा। पुत्रीया । अपने पुत्र की इच्छा। पुत्रकाम्या। अपने पुत्र की इच्छा। लोलूया। पुन:-पुन: काटना। कण्डूया। खाज करना।
सिद्धि-(१) चिकीर्षा । चिकीर्ष+अ। चिकीर्ष+अ। चिकीर्ष+टाप् । चिकीर्ष+आ। चिकीर्षा+सु। चिकीर्षा।
यहां 'इकन करणे (तनाउ०) धातु से 'धातोः कर्मण: समानकर्तकादिच्छायां वा (३।१।७) से प्रथम सन् प्रत्यय और तत्पश्चात् सन्नन्त चिकीर्ष धातु से इस सूत्र से
Jain Education International
Lonal
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org