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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (४) क्षिप्नुः । यहां क्षिप प्रेरणे (दि०प०) धातु से इस सूत्र से 'क्नु' प्रत्यय है। पूर्ववत् लघूपध गुण का प्रतिषेध होता है। घिनुण
(१) शमित्यष्टाभ्यो घिनुण।१४१। प०वि०-शमिति अव्ययपदम्, अष्टाभ्य: ५।३ घिनुण १।१ । अत्र निपातानादतनेकार्थत्वाद् इतिशब्द आद्यर्थे वर्तते। शम् इति येषामिति शमिति। इति शब्दस्याव्ययत्वाद् ‘अव्ययादाप्सुपः' (२।४।८२). इति सुपो लुग् भवति।
अन्वय:-शमिति-अष्टाभ्यो धातुभ्यो वर्तमाने घिनुण, तच्छीलादिषु।
अर्थ:-शमिति शमादिभ्यो धातुभ्य: परो वर्तमाने काले घिनुण् प्रत्ययो भवति, तच्छीलादिषु कर्तृषु।
उदा०-(शम्) शमी। (तम्) तमी। (दम्) दमी। (श्रम्) श्रमी। (भ्रम) भ्रमी। (क्षम्) क्षमी। (क्लम्) क्लमी। (मद्) प्रमादी, उन्मादी।
___ आर्यभाषा-अर्थ-(शमिति) शम् आदि (अष्टाभ्य:) आठ (धातो:) धातुओं से परे (वर्तमाने) वर्तमानकाल में (घिनुण) घिनुण् प्रत्यय होता है, यदि इनका कर्ता (तच्छील०) तच्छीलवान्, तद्धर्मा और तत्साधुकारी हो।
उदा०-(शम्) शमी। शान्त रहनेवाला। (तम्) तमी। चाहनेवाला। (दम्) दमी। उपरत रहनेवाला। (श्रम्) श्रमी। तप करनेवाला। (भ्रम्) भ्रमी। घूमनेवाला। (क्षप्) क्षमी। सहन करनेवाला। (क्लम्) क्लमी । ग्लानि करनेवाला। (मद्) प्रमादी। प्रमाद करनेवाला। उन्मादी। उन्मादवाला (पागल)।
सिद्धि-(१) शमी। शम्+घिनुण्। शम्+इन् । शमिन्+सु । शमीन्+सु। शमी।
यहां 'शमु उपशमें (दि०प०) धातु से इस सूत्र से घिनुण्' प्रत्यय है। 'अत उपधायाः' (७।२।११६) से प्राप्त उपधावृद्धि का नोदात्तोपदेश' (७।३।३४) से प्रतिषेध होता है। सौ च' (६।४।१३) से 'शमिन्' की उपधा को दीर्घ, हल्डयाब्भ्यो ' (६।१।६६) से सु' का लोप और नलोप: प्रातिपदिकान्तस्य' (८।२७) से न्' का लोप होता है।
(२) तमी। तमु काङ्क्षायाम्' (दि०प०)। (३) दमी। दमु उपशमें' (दि०प०)। (४) श्रमी। 'श्रमु तपसि खेदे च' (दि०प०)। (५) भ्रमी। 'भ्रम अनवस्थाने (दि०प०)।
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