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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
अर्थ:- क्रियाया लक्षणे हेतौ च विषये वर्तमाने कालेऽर्थे विद्यमानाद् धातोः परस्य लट: स्थाने शतृशानचावादेशौ भवतः ।
उदा०- ( लक्षणे ) तिष्ठन्तोऽनुशासति गणका : ( शतृ) । शयाना भुञ्जते यवनाः (शानच्) । (हेतौ ) अर्जयन् वसति ( शतृ ) । अधीयानो वसति (शानच्) ।
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आर्यभाषा - अर्थ - (क्रियायाः) क्रिया के (लक्षणहेत्वोः ) लक्षण और हेतु विषय में (वर्तमाने) वर्तमानकाल अर्थ में विद्यमान (धातोः ) धातु से परे (लट: ) लट् के स्थान में (शतृशानचौ) शतृ और शानच् आदेश होते हैं।
उदा०- (लक्षण) तिष्ठन्तोऽनुशासति गणका : (शत) । गणक लोग खड़े-खड़े शिक्षा करते हैं। खड़े-खड़े शिक्षा करना गणक लोगों का लक्षण (चिह्न) है। शयाना भुञ्जते यवनाः (शानच् ) । यवन लोग लेटे-लेटे खाते हैं। लेटे-लेटे खाना यवन लोगों का लक्षण है। (हेतु) अर्जयन् वसति ( शतृ)। वह यहां अर्जन (कमाई ) के हेतु से रहता है। अधीयानो वसति । वह यहां अध्ययन के हेतु से रहता है।
सिद्धि - (१) तिष्ठन्तः । स्था+शतृ । स्था+शप्+अत् । तिष्ठ+अ+अत् । तिष्ठत्+जस् । तिष्ठ नुम् त्+अस् । तिष्ठ+न् त्+अस् । तिष्ठन्तः ।
यहां लक्षणविषय में 'ष्ठा गतिनिवृत्तौ (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से 'शतृ' प्रत्यय है। यहां 'कर्तरि शप्' ( ३।१।६८) से 'शप्' विकरण-प्रत्यय, पाघ्राध्मा०' (७/३।७८) से 'स्था' के स्थान में 'तिष्ठ' आदेश है। 'शतृ' प्रत्यय के उगित् होने से 'सर्वनामस्थानेऽधातो:' (७1१1७०) से 'नुम्' आगम होता है।
(२) शयाना: । शीङ् + शानच् । शी+शप्+आन । शी+आन। शे+आन। शयान+जस् ।
शयानाः ।
यहां लक्षणविषय में 'शीङ् स्वप्ने' (अदा०आ०) धातु से इस सूत्र से शानच् प्रत्यय है। यहां 'कर्तरि शप्' (३ । १ । ६८) से 'शप्' विकरण- प्रत्यय और उसका 'अदिप्रभृतिभ्यः शप:' (२।४।७२) से लुक् होता है। 'शीङः सार्वधातुके गुण:' (७।४।२१) से 'शीङ्' धातु को गुण 'और 'एचोऽयवायाव:' ( ६ । १।७५ ) से 'अम्' आदेश होता है। (३) अर्जयन् । अर्जु+णिच् । अर्ज्+इ। अर्जि+शतृ । अर्जि+शप्+अत्। अर्जि+अ+अत् । अर्जे+अ+अत्। अर्जयत्+सु । अर्जयनुमृत्+सु। अर्जयन्त्+सु। अर्जयन्त्+० । अर्जयन् ।
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यहां हेतु विषय में 'अर्ज प्रतियत्नें (चु०3०) धातु से इस सूत्र से 'शतृ' प्रत्यय है यहां चौरादिक 'अर्ज्' धातु से 'सत्यापपाश०' (३ । १ । २५ ) से णिच्' प्रत्यय होता है। णिजन्त 'अर्जि' धातु से 'शतृ' प्रत्यय परे होने पर 'कर्तरि शर्पा' (३ (१/६८ ) से 'शप्' विकरण-प्रत्यय और 'सार्वधातुकार्धधातुकयोः' (७।३।८४) से अङ्ग को गुण होता है। शेष कार्य 'पचन्' (३1२ । १२५ ) के समान है।
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