SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीयाध्यायस्य प्रथमः पादः उदा०-लोहितादि:-अलोहितो — लोहितो भवति-लोहितायति, लोहितायते वा। डाजन्त:-अपटपटा पटपटा भवति-पटपटायति, पटपटायते वा। ___ लोहित । नील । हरित। पीत । मद्र । फेन । मन्द । इति लोहितादिः । आकृतिगणत्वात्-वर्मन्, निद्रा, करुणा, कृपा इत्यादयो लोहितादिषु गण्यन्ते। आर्यभाषा-अर्थ-(अच्वे:) च्वि-प्रत्यय से रहित (लोहितादिडाज्भ्यः) लोहित आदि और डाच् प्रत्ययान्त प्रातिपदिकों से (भुवि) होने अर्थ में (वा) विकल्प से (क्यष्) क्यष् प्रत्यय होता है। पूर्व सूत्र में अभूततद्भाव अर्थ में क्यङ् प्रत्यय का विधान किया गया है, लोहित आदि तथा डाच्-प्रत्ययान्त प्रातिपदिकों से उक्त अर्थ में क्यष् प्रत्यय ही हो, इस नियम के लिए यह कथन किया गया है। इससे वा क्यषः' (१।३।९०) से परस्मैपद और आत्मनेपद होता है। उदा०-लोहितादि-अलोहितो लोहितो भवति-लोहितायते। जो लाल नहीं है वह लाल हो रहा है। डाजन्त-अपटपटा पटपटा भवति-पटपटायते। जो पटपट शब्द वाला नहीं है वह पटपट शब्दवाला हो रहा है। लोहित आदि शब्द धर्मवाची हैं, इनसे शब्दशक्ति के स्वभाव से तद्धर्मी द्रव्यों का ग्रहण किया जाता है। सिद्धि-(१) लोहितायति । लोहित+सु+क्यण् । लोहित+य। लोहिताय । लोहिताय+लट् । लोहिताय+शप्+तिप् । लोहिताय+अति। लोहितायति। ___ यहां वा क्यष:' (१।३।९०) से विकल्प से परस्मैपद होता है, पक्ष में आत्मनेपद भी होता है-लोहितायते। (२) पटपटायते । पटत्+डाच् । पटत्+पटत्+आ। पटत्+पटक+आ। पट+पट्+आ। पटपटा। पटपटा+क्यण् । पटपटा+य। पटपटाय। पटपटाय+लट् । पटपटाय+शप्+तिप् । पटपटाय+अ+ति। पटपटायति। यहां 'पटत्' शब्द से 'अव्यक्तानुकरणात्०' (५।४।५७) से 'डाच्' प्रत्यय है। 'डाचि बहुलं द्वे भवतः' से 'पटत्' शब्द को द्विर्वचन होता है। डित्यभस्यापि टेर्लोप:' (वा० ६।४।१४३) से पटत् के टिभाग (अत्) का लोप होता है। नित्यमामेडिते डाचि' (वा० ६।१।९६) से पूर्व पटत् के तकार को पररूप पकार होता है। शेष कार्य लोहितायति' के समान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy