SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीयाध्यायस्य द्वितीयः पादः २१७ उदा०-‘अग्नि चिक्यान:' (तै०सं० ५।२।३।६)। ‘सोमं सुषुवाण:' (मै०सं० ३।४।३) न च भवति-अहं सूर्यमुभयतो ददर्श' (यजु० ८।९)। आर्यभाषा-अर्थ-(छन्दसि) वेदविषय में (लिट:) लिट् के स्थान में (वा) विकल्प से (कानच्) कानच् आदेश होता है (भूते) भूतकाल में। उदा०-अग्नि चिक्यान: । अग्नि का चयन आधान करनेवाला। सोमं सुषुवाणः । सोम का सवन (निचोड़ना) करनेवाला। सिद्धि-(१) चिक्यानः । यहां चिञ् चयने (स्वा०3०) धातु से इस सूत्र से लिट्' के स्थान में कानच्’ आदेश है। चि+लिट् । चि+कानच् । चि+चि+आन। चिक्यान+सु । चिक्यानः । लिटि धातोरनभ्यासस्य' (६/११८) से चि' धातु को द्वित्व होता है। अभ्यास से उत्तर 'चि' धातु के चकार को विभाषा चे:' (७।२।५८) से कुत्व और (एरनेकाचोऽसंयोगपूर्वस्य' (६।४।८२) से 'यण' आदेश होता है। (२) सुषुवाणः । यहां पुत्र अभिषवे' (स्वा०उ०) धातु से इस सूत्र से लिट्' के स्थान में कानच्’ आदेश होता है। सु+लिट् । सु+कानच् । सु+सु+आन। सु+स् उवड्+आन। स+षुव्+आण। सुषुवाण+सु । सुषुवाणः । पूर्ववत् 'सु' धातु को द्वित्व, 'अचि अनुधातुभ्रुवां०' (६।४।७७) से 'सु' को उवङ्' आदेश और 'आदेशप्रत्यययोः' (८।३।५९) से षत्व होता है। (३) ददर्श । सिद्धि पूर्ववत् (३।२।१०५) है। यहां 'लिट्' के स्थान में कानच्’ आदेश नहीं है। वा क्वसुः (लिडादेशः) (३) क्वसुश्च ।१०७। प०वि०-क्वसुः ११ च अव्ययपदम् । अनु०-छन्दसि, लिट:, वा, भूते इति चानुवर्तते । अन्वय:-छन्दसि लिटो वा क्वसुश्च भूते। अर्थ:-छन्दसि विषये लिट: स्थाने विकल्पेन क्वसु-आदेशोऽपि भवति, भूते काले। उदा०-जक्षिवान् । पपिवान् (ऋ० १ १६१ १७) । न च भवति-'अहं सूर्यमुभयतो ददर्श' (यजु० ८।९)। आर्यभाषा-अर्थ-(छन्दसि) वेदविषय में (लिट:) लिट् के स्थान में (वा) विकल्प से (क्वसुः) क्वसु आदेश (च) भी होता है (भूते) भूतकाल में। उदा०-जक्षिवान् । खानेवाला। पपिवान् (१।६१ १७) पीनेवाला। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy