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________________ २०६ तृतीयाध्यायस्य द्वितीयः पादः अर्थ:-कर्मणि कारके उपपदे दृशिधातो: पर: क्वनिप् प्रत्ययो भवति, भूते काले। उदा०-मेरुं दृष्टवानिति मेरुदृश्वा। परलोकं दृष्टवानिति परलोकदृश्वा। आर्यभाषा-अर्थ-(कमणि) कर्म कारक उपपद होने पर (दशे:) दृश् (धातो:) धातु से परे (क्वनिप्) क्वनिप् प्रत्यय होता है (भूते) भूतकाल में। उदा०-मेरुं दृष्टवानिति मेरुदृश्वा । मेरु पर्वत को देखनेवाला । परलोकं दृष्ट्वानिति परलोकदृश्वा । परलोक को जाननेवाला। ___ सिद्धि-मेरुदृश्वा । यहां मेरु' कर्म उपपद होने पर दृशिर प्रेक्षणे' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से क्वनिप्' प्रत्यय है। मेरु+दृश्+क्वनिप् । मेरुदृश्वन्+सु। सर्वनामस्थाने चासम्बुद्धौ' (६।४।८) से नकारान्त अम की उपधा को दीर्घ होता है। हल्ड्याब्भ्यो०' (६।१।६६) से 'सु' का लोप और नलोप: प्रातिपदिकान्तस्य' (८।२७) से न्' का लोप होता है। ऐसे ही-परलोकदृश्वा । क्वनिप् __(२) राजनि युधिकृञः।६५। प०वि०-राजनि ७।१ युधि-कृत्र: ५।१। स०-युधिश्च कृञ् च एतयो: समाहारो युधिकृञ्, तस्मात्-युधिकृञः (समाहारद्वन्द्वः)। अनु०-कर्मणि, क्वनिप्, भूते इति चानुवर्तते । अन्वय:-राजनि कर्मण्युपपदे युधिकृञो धातो: क्वनिप् भूते। अर्थ:-राजनि कर्मण्युपपदे युधिकृञ्भ्यां धातुभ्यां पर: क्वनिप् प्रत्ययो भवति, भूते काले। उदा०- (युधि) राजानं योधितवानिति राजयुध्वा । (कृञ्) राजानं कृतवानिति राजकृत्वा। आर्यभाषा-अर्थ-(राजनि) राजन् (कमणि) कर्म उपपद होने पर (युधिकृञः) युध् और कृञ् (धातो:) धातु से परे (क्वनिप्) क्वनिप् प्रत्यय होता है (भूते) भूतकाल में। उदा०-राजानं योधितवानिति राजयुध्वा । राजा को लड़ानेवाला। राजानं कृतवानिति राजकृत्वा । राजा को बनानेवाला। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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