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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
आर्यभाषा - अर्थ - (जायापत्योः) जाया और पति (कर्मणि) कर्म कारक उपपद होने पर (हन: ) हन् (धातोः) धातु से परे (टक्) टक् प्रत्यय होता है (लक्षणे) यदि हन् धातु काकर्ता हत्या के लक्षणवाला है।
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उदा०- (जाया) जायां हन्तीति जायाघ्नो ब्राह्मण: । अपनी जाया=पत्नी को मारनेवाला दुराचारी ब्राह्मण । (पति) पतिं हन्तीति पतिघ्नी वृषली। पति को मारनेवाली व्यभिचारिणी नीच नारी ।
सिद्धि-(१) जायाघ्नः। यहां जाया कर्म उपपद होने पर 'हन हिंसागत्योः' ( अदा०प०) धातु से इस सूत्र से 'टक्' प्रत्यय है । 'टक्' प्रत्यय के कि होने से 'गमहनजन०' (५।४।५८ ) से हन्' धातु की उपधा का लोप और 'हो हन्तेणिन्नेषु' (७ 1३1५४) से 'हन्' के 'ह' को कुत्व (घ्) होता है ।
से
(२) पतिघ्नी। यहां पति कर्म उपपद होने पर पूर्वोक्त 'हन्' धातु से इस सूत्र 'टक्' प्रत्यय है। 'टक्' प्रत्यय के टित् होने से 'टिड्ढाणञ्०' (४|१|१५ ) से स्त्रीलिङ्ग में 'ङीप् ' प्रत्यय होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है ।
टक्
(२) अमनुष्यकर्तृके च । ५३ । प०वि०-अमनुष्यकर्तृके ७।१ च अव्ययपदम्।
स०-न मनुष्योऽमनुष्यः । अमनुष्यः कर्ता मस्य सोऽमनुष्यकर्तृकः, तस्मिन्-अमनुष्यकर्तृके (नञ्तत्पुरुषगर्भितबहुव्रीहि: ) ।
अनु० - कर्मणि, हन:, टक् इति चानुवर्तते ।
अन्वयः - कर्मण्युपपदे हनो धातोष्ट, अमनुष्यकर्तृके च । अर्थ :- कर्मणि कारके उपपदे हन्- धातोः परष्टक् प्रत्ययो भवति, अमनुष्यकर्तृके च सति।
उदा०- ( हन्) जायां हन्तीति जायाघ्नस्तिलकालकः । पतिं हन्तीति पतिघ्नी पाणिरेखा । श्लेष्माणं हन्तीति श्लेष्मघ्नं मधु । पित्तं हन्तीति पित्तघ्नं घृतम् ।
आर्यभाषा-अर्थ- (कर्मणि) कर्म कारक उपपद होने पर (हन: ) हन् (धातो: ) धातु से परे (टक्) टक् प्रत्यय होता है (अमनुष्यकर्तृके च) यदि उस हन् धातु का कर्ता मनुष्य न (च) भी हो ।
उदा०
- (हन्) जायां हन्तीति जायाघ्नस्तिलकालकः । जाया को मारनेवाला काला तिल । पतिं हन्तीति पतिघ्नी पाणिरेखा। पति को मारनेवाली हस्तरेखा। श्लेष्माणं
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