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________________ १३८ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा-अर्थ-(कमणि) कर्म कारक और (समि) सम्-उपसर्ग उपपद होने पर (ख्यः) ख्या (धातो:) धातु से परे (क:) 'क' प्रत्यय होता है। उदा०-(ख्या) गा: संचष्टे इति गोसंख्यः । गौओं की संख्या करनेवाला। सिद्धि-गोसंख्यः । यहां गौ कर्म और सम् उपसर्ग उपपद होने पर 'चक्षिङ् व्यक्तायां वाचि' (अदा०आ०) धातु से क' प्रत्यय है। चक्षिङ: ख्या' (२।४।५४) से चक्षिङ्' के स्थान में ख्याञ्-आदेश होता है। आतो लोप इटि च' (६।४।६४) से 'ख्या' के आ का लोप होता है। विशेष-ख्या-यहां चक्षिङः ख्याज' (२।४।५४) से जो चक्षिड' के स्थान में ख्या' आदेश होता है उसी का यहां ग्रहण किया जाता है, 'ख्या प्रकथने (अदा०प०) धातु का नहीं है, क्योंकि उसका सम्-उपसर्गपूर्वक प्रयोग नहीं होता है। टक् (१) गापोष्टक् ।। प०वि०-गापो: ६ ।२ पञ्चम्यर्थे । टक् १।१ । स०-गाश्च पाश्च तौ गापौ, तयो:-गापोः (इतरेतरयोगद्वन्द्व:) । अनु०-कर्मणि, अनुपसर्गे इति चानुवर्तते । अन्वय:-कर्मण्यनुपसर्गे चोपपदे गापाभ्यां धातुभ्यां टक्। अर्थ:-कर्माण कारकेऽनुपसर्गे चोपपदे गापाभ्यां धातुभ्यां परष्टक् प्रत्ययो भवति। उदा०-(गा) शक्रं गायतीति शक्रग:। साम गायतीति सामगः । स्त्रियाम्-शक्रगी। सामगी। (पा) सुरां पिबतीति सुरापः । शीधुं पिबतीति शीधुप: । स्त्रियाम्-सुरापी। शीधुपी। आर्यभाषा-अर्थ-(कर्मणि) कर्म कारक और (अनुपसर्गे) उपसर्गरहित उपपद होने पर (गापो) 'गा' और 'पा' (धातो:) धातु से परे (टक्) 'टक्' प्रत्यय होता है। उदा०-(गा) शक्रं गायतीति शक्रगः । इन्द्र देवता की स्तुति करनेवाला। साम गायतीति गायतीति सामगः । साम-वेद का गान करनेवाला। स्त्रीलिङ्ग में-शक्रगी। इन्द्र देवता की स्तुति करनेवाली नारी। सामगी। सामवेद का गान करनेवाली नारी। (पा) सुरां पिबतीति सुरापः। सुरा का पान करनेवाला। शीधं पिबतीति शीधपः । अंग्ररी शराब का पान करनेवाला। स्त्रीलिङ्ग में-सुरापी। सुरा का पान करनेवाली नारी। शीधुपी। अंगूरी शराब का पान करनेवाली नारी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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